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भीदे काउं । सायं पह अमावियपरिसाइवि कुणइ धम्मकहं ॥३॥ जो-सवं च देसविरई संमं वित्या व होइ कहणाओ। इहरा अमूड-10 गवघरवादा चैत्य श्री
| लक्खो न कहेइ मविस्मइन च ॥४॥ चउविहसुरपरियरिजो रयणीए वारजोयणेहि तो। पत्तो मज्झिमपावा बहि महसेणयधर्म संघा-IVA
वणुजाणे ।।५।। तहिं रावणवईवंतरजोइसवेमाणिआवि ओसरणे । सबिडीद सपरिसा कासी नाणुप्पयामहिमं ॥६॥ तत्थ किर चारविधौ ||
| सोमिलजोति माहणो तस्स दिक्खकालंमि! पउरा जणजाणवया समागया जनवाईमि ॥ तह इंदभूतिऽगणिभूइवाउभूइवियत्तय ॥२९२॥
मुहम्मा। मंडियमोरियपुचा अकंपिओ जयलमाया य ॥८॥मेयपहासा इस इमार वेयाइविउ महुज्झाया। उभयविसालवंसा समागया जनवाद | दिवदेवघोस सोऊ मालवा तहिं तुहा अहो जनिएहिं जुटुं देवा किर आगया इहयं ॥१०॥सोऊण कीर|| माणि महिमं देवेहि जिणवरिंदस्त । अहद अहंमाषी अमरिसिओ इंदभूइति ॥११॥ मोतूप ममं लोगो कि धावइ एस वस्स |पामूलं । अनोऽवि जाणइ मए ठिमि कचोधयं यं ॥१२॥ वनिज व मुक्खजणो देवा कहऽणेण विम्हयं नीया । वदति संधुणंति य जेवं सबन्नुबुद्धीए ॥१३॥ अहवा जारिसउचिस सो नापी तारिसा सुरा वेकि। अणुसरिसो संजोगो मामनडाणं व मुक्खाणं ॥१४॥ काउं हयप्पयावं पुरजो देवाल दाणवाणं च । नासेहंनीसेसं खगेण सान्नुवार्य से ॥१४॥ इस वुसूर्ण पत्तोदाई तेलोकपरि वीरें । चउतीसाइसयनिहिं स संकिजो चिहिलो पुरओ ॥१५॥ मषियं च-"साधाइटेन्द्रभूतिः समवसतिस्पोभूषपस्यांतिकस्थानापातानंगनामिः सह विदुषवरान पंचविमानाचार्यरूपं जमति दश दिशो मासयन कारकत्या, तसौ योमात् सशंको मुनिपतिपुरतो हा किमेतत् किमेतत् । ॥१७॥ हेदह गोयम सागपाचे जिणे चिंतेई । नामपि मे विवामइ बाबा को मन याणेह ॥१॥ जावा हिययगयं मे संसयमुनिज अहन हिंदिजा। तो इज बिम्हो मे इस चितंतो पुणो
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