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चिलाति| पुत्रकथा
श्रीदे. I चैत्यश्रीपर्म संघा चारविधौ ॥२८॥
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सया अस्थि विदेहेसु इत्यनकातिको अह न दिट्ठो सो। अन्नेहिदि नणु एवं विऊ तुम चेव सधन्नू ॥३६॥ इय तुह सज्झनिरासे | निरस्सिा चैव तुह पइण्णाई। तो सिद्धो सबन्न अत्थि धुवं तत्य पञ्चक्खो ॥३७॥ अणुमेओवि इमो जं अणुभावो जोइसोसहा-| ईणं । पयडो न होइ तं विणु जह धूमधयं विणा धूमो ॥३८॥ इय जुत्तिजुत्तमुत्तो दिओ जिओ माहिओ य जइणवयं । खुडेण तओ सासणदेवीइ थिरीको एवं ॥३९॥ भो भो मुक्ख! पञ्चक्खसक्खिणि दुक्खलक्खखयकरणिं । पतं दिक्खमसट्ठाणनाणाओ माऽवमाणेतु ॥४०॥ तो जाओ चरणरओ सो तवनिरओवि विहियजाइमओ। निंदइ वत्थंगमलं सुदुच्चया पुवपगई जं ॥४१॥ बंजुलसंगा व अही नगरा नगरासया जणा जाया। सग्गापवग्गजायाणुलग्गया तस्स संसग्गा ॥४२॥ अह जन्नदेवदइया अणुरइया पुण गिहागमणहेउं । बहुजोगकम्मुणा तस्स कम्मणं देह पारणए॥४३॥ जिज्झतो कम्मणकम्गुणाऽमुणा किण्हपक्ख इव चंदो।स मओ मुणी लहु गओ पढमदिवं तरणिविंचं व॥४४॥ तो चइअ जनदेवो देवो जाइमयऽतुच्छमललेवो । तुह दासिचिलाइसुओजाओ एसो बहुअदोसो ॥ ४५ ॥ तह जन्नदेवमरणा गयसरणा सिरिविधायसंसरणा। जायाऽणुतावओ सा जाया से संजई जाया ॥४६॥ गालोइअपडिकंता कालं कचाऽऽदिमं दिवं पत्ता | तवसोनत्यिदुरप्पंदुस्सझं नय दुरारज्झ॥४७॥ तो सा चइअ सुहम्मा चइयसुहमा इमा तुमं जाया। मजाए भद्दाए धूत्रा धूाखिलसुहोहा ॥४८॥ अह रिसिवहुत्थपावेण तेण पत्ता इमं नणु अवत्थं । धण! तुह दुहिया दुहिया जाया भमिही भवकडिल्ले ॥४९॥ इय सोउ भउद्विग्गो गहिअ जिर्णते वयं सुवेरम्मा। अच्चरविहियसुरंगे सो धणसाहू गओ सग्गे ॥५०॥ अह सो चिलाइपुत्तो मुहं मुई सुसुमामुहं पस्सं । अमुणिपरिस्समो जान जाइ दक्खिणदिसं कंपि । ५१॥ ता पिछिय विच्छार्य तं उबिग्गो मणमि सज्झायं । छायातलं व पिच्छइ संतावहरं मुणिं मग्गे॥२२॥ भणइ यधम्म |
॥२८२॥