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चिलातिपुत्रकथा
श्रीदे । विनवेइ घणो। पह! केण कम्मणा एअमावयं सुंसुमा पचा ? ॥२०॥ मणइ पह आसि पुरे खिइप्पइट्ठमि जण्णदेवदिओ। पंडि- चैत्य श्रीधर्म संघा
अमाणी निंदइ जिणं च जिणसासणं च बहुं ॥२१॥ अह तं पयोहसुडो असहंतो सुत्थियायरियसीसो । गुरुणा वारिजंतोवि चारविधी
| उवडिओ तस्स वाएण ॥२२॥जो जेण जिप्पई सो तस्सीसो ठाविउं इस पइन्न । भण किंचित्ति अखुडेण तो खुद्देणं भणइ इमो ॥२३॥ ॥२८॥
नत्थि धुवं सम्वन्नू इति पक्षः, पमाणपंचगअगोयरवेण इति हेतुः। जं जं पमाअगिझं तं तमसंतं इति व्याप्तिः खपुष्पं व इति रष्टांतः ॥२५।। उवलन्भइ न पमाहिं सबन्नू इत्युपनयः, तेण नत्थि नणं सो इति अवसायः। अथ दोषोद्धारः-एस अदसो पक्खो लोयविरुद्धाइरहिओ जं ॥ २५ ॥ हेऊवि असिद्धाईरहिओ देसाइअंतरेवि जओ। नत्थि परो सम्वन्नू इति नासिद्धः, तहऽणेण न सिझइ विरुद्धं इति न विरुद्धः ॥२६॥ तह तस्स नत्थि सचा अविय सदा अणुवलन्भमाणस्स इति नानैकांतिकः । सच्चमयच्चिय वित्थरदिटुंतोवणयअबसाया ॥२७॥ तह नहु पञ्चक्खेणं उवलन्भइ इत्थ कोइ सव्वन्नू । जं सद्दरूवरसगंधफासरूवो न इट्टो सो ॥२८॥ ता सद्देण न सुन्वइ भंभाइसरुव्य सो उ चक्खूहि । तह रूवन्न न दीसइ आसाइजइ नहु रसुव्व ॥२९॥ गंधव न जिंधिजइ चेइअइ नेव धूलिफरिसुच। इस पञ्चक्खअविसओ अणुमाणेणवि न सो गिज्झो ॥३०॥ जं हेउभावओ तं नत्थि अ सब्बनुसाहगों हेऊ। धुत्तकयऽनन्नाविरुद्धआगमो साहइ न एवं ॥ ३१ ॥ कह सारिस्सअभावा पहवइ उवमावि एयसिद्धिकए । अत्यापत्तीवि न अत्थसाहगा गुणअदंसणओ ।। ३२ ॥ इअ पंचपमाईओ जिणो अभावप्पमाणविसयगओ । तदभावे किं जिणसासणंति चिल्लय! पइण्णा मे ॥३३।। बुल्लेइ चिल्लओ जन्नदेव! इह किं तया न सबन्न । दिट्ठो उय अन्नेहिवि? जइ भवया तो नणु सदोसो ॥३४॥ जं माउविवाहपियामहादि दिट्ठा न तेन ते जाया इति विरुद्धः। तह दूरदेससंठिअगिरिनगराई न किं संति ॥३५॥ इय सबन्नूवि
॥२८॥