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चिलाति. पुत्रकथा
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चारविधौ
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सह तप्पुट्ठीइ जाइ
मोठे तु तम्गिरं चोरा । मिल्दिा
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श्रीदे० चोरे भणइ जह घणो रायगिहे अस्थि भूरिषणो॥३॥ धृया य संसमा से सा मझ धणं दहति वुतु गओ। तेहिं समं रायगिहे चैत्य० श्री- रायगिई सयललच्छीणं पाओसोवणिं पउंजिय जापविभइ घणमिदे घणो वाच । पणसुअसहिओं नट्ठो मुट्ठो से तकरहिं थरो॥५॥ HTANTह करगद निचिसो निचिसो गहियकमलनिरिसो। तं सुंमुमंचिलाइव लाउ गओ भणिय इय सदं ॥६॥ जो अन्नमाउदुढे पाउमणो P उ सो इहं सुहडो। सधणं हरिय धणसुर्ज एसो गइ चिलाइसुओ || अइ आणेह सुयं मे हरिअधणं वोरिमणिय पुररक्खे।
पुचेईि तलवरेहि य सह तप्पुट्ठीह जाइ पणो ८॥ इय पीयं इय बुत्थं इय सुदं सुचमिति भणिरेहिं । पइएहि लहुनीया चोरासन बलवरा से ॥९॥ अहहण अह हय अह गिण्ड २ सोउं तु ताग्गिरं चोरा । मिल्हिा क्षणं पलाणा सवस्सवि वल्लहं जी॥१०॥ तुं गहिय धर्ण विउलं बलिआ आरक्खगा तो सन्ति । जे होइ सिद्धकजो सबोऽविहु अन्नहामइशो॥११॥ तरभो लयायल जलमग्नपिहु संसुमामयं पसं। पीपक्षणउन कणयं चलिओ पुरओ धणो ससुओ॥१२|| अब आसनंमि बणे माहवउ माइमस्सवित्ति बुद्धीए। छितु सिर से गदिई गमो नितो चिलाइसुओ ॥१३॥ वो सुंसुमाकबंध टु धणो विलवए बहुं ससुओ।नयणं| जलीहिं दितो तीह अल मुद्देन ॥१४॥ हा सुअगावले ! बच्छि! उच्छवं मोइयो सुवच्छल्लो। काहं निस्वच्छीए इस वंछा
आति मह पच्छे ! ॥१५॥ हा जइ न दुख बुद्धि अकरिस्मता कयाइ बहुधणओ। दिशातिममोइस ता कह जायचि अमई मे १६॥ इस सोगसंकृकीलिअहिपयो सो रिट डेनियो। पचोरण जंजिगनिहं व बसावयाच्या १७॥ चिंतइ सव्वस्सखो
। कह द अया सुयाय पाणपिआ। र आबया व ससुत्रस्त भइ हा हा विलसि विहियो १ सो असमत्धुण्डतण्हामहावताविओ पचो। संतविजपगितको सोरायगिदं प रायगिह ॥ १९ ॥ अह तत्व समोसरि वीरजिणं नमिय
महामइओ ॥११॥ तर
॥२८०॥