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________________ मीदेसुरसंपयपि संपद क किवि ॥ ८॥ एवं धुणिय मुणिन्द अडीइ इंजो तो परिभमंता । उनिग्गयपारोहेण निजिउं कलिमपथिकी चैत्यश्री | निहाणं ॥९॥ ते जायलोहखोदा तकालं गलियसयलपडिबंधा । अलिषेणुकरा कडनिरिडभिउडिणो मिडिउमादत्ता ॥१०॥ अह धर्मसंघापारविधौ ) नाणेण वियाणिय तवरियं [ग्रन्थानम्-५०००] ते पयंपिया मुमिणा । किनु न मुएइ अजवि भो वरं पुबभवपभव ॥११॥ | किं भो अतुच्छमच्छरमुच्छारिंछोलिछलियमुहभावा! काउं वइरं नणु पावपुंजमज्जेह भूोवि ॥१२॥ तं सोई सुणिपणमणपमा॥२४६॥ । वो खुडियनिविडदुरियमराते गयवेरा उज्झियछुरिया नमिऊण मुणिचरणे ॥१३॥ पुच्छति कहणु पहुणे एस विरोहो पुरावि ? तो स मुणी। पभणइ कोसंपीए विजयधणा बंधुणो आसि ॥१४धणियं धणजणमणा कयादि ते रोहणायले पत्ता । घणखाणिखोणिखणणेण कहवि लहिउं रयणजायं ॥ १५॥ तं काउ गठिबद्धं चलिया नियनयरसमुह कमसो। पचा इह अडवीए 3 छलिओ मिल्लहलोलो॥१६॥ तन्भयभरतरलच्छा निहुयं निहणंति रयणगंठिंजा।एयस्म तरुत्स तले ता पत्ता भिल्लसंधाया।॥१७॥ नस्संता नेहि इमे धरि पल्लीवइस्स उवणीया। पक्खित्ता गुत्तीए दविणं किंपि हु अमन्त्रंता १८॥ विणिवारियाणा सेहिजंता बहुं मरेऊण । इत्थेव य निहिठाणे मुच्छाए मूसगा जाया ।। १९ ।। अन्नुवं मिडिय मया तत्थ धणो तामलित्तिनगरीए । जाओ जयसत्याहो विहओ पुण इत्य चेव हरी ।। २० ॥ कृत्यादि दिवसओ सत्येणं जंतओ हो दहयं। हरिणा हणियो | जाओ इह निपडग्गामि कुलउत्तो ॥ २१ ॥ सीहोऽवि हओ सरहेण अहह इह चेव वानरो जाओ। अह कुलपुत्तो पत्तो कइया इत्येव दारुकए ॥२२॥ तेणं कविणा सरनिसियनहरनियरेण मारिओ एसो। इमिणावि सियपरसुणा हओ कई तो मया दोवि ॥२३॥ ॥२४६॥ जाया घरादहरिणा इहेव कड्यावि सूपरेण मिगो। इणिओ इत्थ चरंतो इयरो पंचागणेण पुणो ॥२४॥ कुल्लागसनिवेसे जाया ते | IADI
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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