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________________ बन्धुदत्त कथा श्रीदे० चैत्यश्री धर्म संघा चारविधौ ॥२३९।। तेण ॥३२८॥ वियर मा कयाइ संसारे ! दास परमिटिमुद्दाए । सपियस्सधम्ममकहिंसु जीवदयमूलं । तह पंचनाकार पिहिफलजुचं इह कहिंसु ॥३२५॥ अत्र च पूर्वाचार्यप्रणीतगाथा:-"अरिहंताई पंचवि पयाई बीयाई परममंताणं । एयाणुवरिं चूला एसो पंचत्ति एमाई ॥३२६।। तित्तीसक्खरमाणा इमा य तस्सत्तिपयडणपहाणा । एवं इमो समप्पड फुडमक्खरअट्ठसठ्ठीए ॥ ३२७॥ एवं पढिओ एसो विहीह लक्खेण सेयसुरहीणं । कुसुमाणं पुण जविओ भविएण तदेगचित्तेण ॥३२८।। वियरइ भुवणभहियं तित्थंकरचकिगणहरपर्यपि । जह तह सुलहाणं पुण का बत्ता सेसवत्थूणं ॥३२९॥ अनं च इमाउच्चिय न होइ मणुओ कयाइ संसारे । दासो पेसो दुहिओ नीओ विंगलिंदिओ चेव ॥ ३३०॥ अविय-अंतोऽरिहंतविन्नास दाहिणावत्तसिद्धमाईणं । झाणं च इत्थ किचं निचं परमिट्टिमुद्दाए ॥३३१॥ करआवत्ते जो पंचमंगलं साहुपडिमसंखाए। नववारा आवत्तइ छलंति नो तं पिसायाई॥३३२॥" किंच-पक्खस्सेगम्मि दिणे भदः परिचत्तपावकम्मेण । रहसिट्टिएण तुमए सरियव्यो एस नवकारो ॥३३३।। अवयारकारिणोऽविहु तया तुम मा मणपि कुप्पिज्जा । इय तुह कुणओ धम्मो होही मणवंछियाई तहा ॥३३४॥ भणितं च-ताव न जायइ चित्तेण चिंतियं पत्थियं च वायाए । कारण समाढतं जाव न सरिओ नमुक्कारो ॥ ३३ ॥ ओमंति भणिय नमिऊण मुणिवरे सो गओ निए ठाणे । महुमजपाणविरओ मिगयावसणाओ विणियत्तो ॥३३६।। नवकारसुमरणपरो कयावि सो सीहदसणाउ मिसं । भीयं संठविय पियं गिण्हइ कोदंडमुइंडं ॥३३७॥ सुमराविओ पियाए नियमं सो पुण विनिचलो जाओ। हरिणा असिया दोविहु जाया देवा सुहममि ।। ३३८ ॥ जओ-"जेणेस नमुकारो पत्तो पुण्णाणुबंधिपुण्णेण । नारयतिरियगईओ तस्सावस्सं निरुद्धाओ॥३३९।। अपिच-पंचनमुकारसमा अंते वचंति जस्स दस पाणा । सो जइ न जाइ मुक्खं अवस्सममरत्तणं लहइ ॥३४०॥" चविउं अवरविदेहे चक्कपुरनिवस्स कुरु ॥२३९॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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