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श्रीदे चैत्यश्रीधर्मसंघाचारविधौ ॥२०७॥
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अदेहमुम्मुक्कसबाहार । दइ भणइ नरिंदो सोइजद देवि! किं एवं ॥७४|| जायस्स धुवो मच्चू न य दीसइ कोइ सा
नमस्कारे सओ अत्य। चकिहरिहलहराई जमणंता तेवि अकंता ।। ७५ ॥ देवी-तं वा किंपि अणआएँ अज! अकजं कयं मए विजयनृपः घोरं । जन कहिउँन सहिउँ न चेव पच्छाइर्ड सका ॥७६|| दुबिलसिअस्स तस्स उ फलं अकाले इमं मए पत्रं । रायाऽऽह नेव | किंपिहु मुणेमि इहऽकज्जमज्जमहं ॥७७॥ दइए किंतु अकजं विहियं तुमए जो दुहं एयं । परमत्थमित्थ वित्थरिय कहसु पाणप्पिए ! खिप्पं ॥७८|| तो हिययंतो गुज्झं तीए घरि अपारयंतीए । कहिओं सयलो कम्मणवुत्तो विजयसुयविसओ ॥७९॥10 पाणि तह तिलयसुंदरीए सव्यस्संपिव सुओ विजयकुमरो। बहुपणयवयणपुवं उवणीओपहु तया मज्झ ॥८०॥ तीएविहु नहु वयणं मणंपि पावाइ मणसि मे ठविअं । अकयन्नुयलोयाणं हाहा पढमा अहं जाया ।।८१॥ उपकारिणि विश्रब्धे आर्यजने यः समाचरति पापम् । तं जनमसत्यसंधं भगवति वसुघे! कथं वहसि ॥८२॥ किंच सुयमरणदुहं न तहा पीडेह मह मणं नाह! । जह संतइयुच्छेयप्पञ्चयं हिययकालुस्सं ॥८३॥ अप्पा न केवलुचिय.मए अणजाइ पाडिओऽणत्थे । विजयसुयनासणेणं तुमंपि पाणेस! निन्भंतं ॥८४॥ तो तीइ मणो दुक्खं अवणेउं विजयकुमरवुत्ततं । वररजलोभपेरंतमक्खए नवरो सई ॥८५॥ तं विजयरायवुत्तमुत्तमं निसमिउं इमा पावा । ईसाइ फुडियहियया झडत्ति पंचत्तमणुपत्ता ॥८६॥ अह काउ पैयकिञ्च तीसे राया फुरंतवेग्ग्गो। चिंतइ अहो महेला सबाणत्थाण पत्थारी ।८७|| सोयसरी दुरियदरी कवडकुडी महिलिया किलेसकरी। वेइरविरोयणअरणी दुक्खक्खयपक्खपडिवक्खा ॥८॥ ते धन्ना सप्पुरिसा अणत्थबहुलाउ पयइकुडिलाओ। दूरेण बलियाओ भुयगीउव जेहिं ललणाओ।।८९॥ एवं चिंतिय राया निएयपहाणेहिं कुसुमनयराओ। आहृय विजयनिवई टावेऊणं |२०७॥
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