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श्रीदे चैत्यश्री- गम्म गुरुसमीवे पडिक्कमिय इरियं । करमत्तदाइवाचारमाइ विहिणा समालोए ॥१४॥ सरिऊणं जिणनाहे गुरुगणगुरुणो तम- नमस्कारे धर्म०संघा-VAL ऽनमहगुरुणो। कयबालगिलाणाईचिंचो भुत्तुं समारो ॥ १५॥ अह सवियारे परिवागदोसभावाउ तंमि आहारे। भुत्तमि तस्स) विजयनृपः चारविधौ
समणाहिवस्स देहमि संकंता ॥१६॥ अइदुमहदाहवेयण जराइसाराइमाइणो रोगा। साहूहि य पडियरिया जाया कहकहवि पउण॥२०॥
तणू ॥१७॥ पडिवोहिय बहुयजणं परिकम्मिय अप्पयं च जिगकप्पे । पजंतकयाणसणा गुरुणो सुरलोयमणुपत्ता ॥१८॥ संतिमई दुट्ठमई अच्चंतविरुद्धभचदाणेण । अजियगिरिगरुयकिलेसजालजलणुजलियदेहा ॥१९॥ नरयतिरिक्खगईसुं निंदियजाईसु दुसहदुहकलिया । दाहजरकाससासाइपरिगयां भमिय भूरिभवे ।। २०॥ दारिदकुले जाया वडकुमारीवि केणवि अणूढा । वेरग्गगया गिहियमहत्वया विहियविविहतवा ।। २१ ॥ मरिऊणं सा जाया तुह मजा तिलयसुंदरी एसा । पुकयदुक्कयवसा रोगेणिमिणा विणस्सिहीहि ॥२२॥ इय जंपिअ कुलदेवी तिरोहिया तं निवो कहइ सवं । दइयाइ सावि सरिउं पुवभवं झूरए हियए ॥२३॥ हा पाव जीव ! किमिमं तए कयं अप्पणा अणत्यकरं । जं तह अणुचियभत्तप्पयाणओ अजिय पा ॥२४॥ वरमणलंमि पवेसो अहिमुहकुहरे वरं करो खित्तो। वरमिह मियारिदाढाकडप्पकंडूयणं विहियं ॥ २५॥ न-उणो अविमरिसियवत्थुसत्थकरणं अणत्यसयजणगं। तो सरसुजीव! इत्तो जिणधम्म पुब्वपंडिवनं ॥२इय देवी दुचरियं भुन्जो मुज्जो पुराभवसमुत्यं । निंदंती संवेगं परं गया शइणा भणिया ॥२७॥ देवि ! कुलदेविकहिओ वुत्तो अवितहो किमेसुत्ति है। तीए मणियं सामिय! सबमिणं अवितहं नूणं ॥२८|| ता इत्तो परभवपत्थभूयकिच्चंमि उजमो जुत्तो। रना पयंपियं देवि! कुणम् । जं तुज्ज्ञ पडिहाइ ॥२९॥ देसु धणं धम्मत्थं सत्त्सु खिचेसु पुनखित्तेसु । दीणाईणं च तहा करेसु अबंपि करणिध ३० सो ॥२०३५