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________________ बीदे. नमस्कारे विजयपः H शाय्यर्थो ये ते सुमहाः नमस्कारा-मंगलवृत्तानि, कियंतश्चैते मण्यते इत्याह-एको द्वौ यो वा यावदुत्कष्टतः अष्टोचरं शतं, पैत्यश्री- एवं यथायोगं नमस्कारान् भणित्वा पश्चाद्यथाविधि प्रागुक्तस्वरूप प्रणिपातं कुर्यात् , तथा चागम:-"पयत्वेण ध्वं दाऊण जिणवधर्म सघा-IA सणं अट्ठसपविसुद्धगंथजुत्तेहिं अपुणरुचेहि महावितेहिं संधुणई विजयकुमारवत् , तत्कथा चैवम्चारविधी • इह अस्थि हथिणपुरे विजियऽनबलो विजयबलो राया। सोहग्गसुंदरी तिलयसुंदरी दोय से भजा ॥१॥ पदमाइ पउम२०२॥ नामो पुत्तो वीयाइ विजयअभिहाणो । बालोचियकीलाहिं कीलंता दोवि वडुति ॥२।। कइयावि तिलयसुंदरीदेवीइ जलोदरं ददं जायं। विहिया बहुबयारा मणपि जाओ परं न गुणो ॥३॥ ता चुन्नमणाइ अगाइ अंसुपुन्नाइपभणिओराया। सामिय! म कारावमु परलोयहियं पसीय लहुं ॥४॥ भणइ निवो दीणमुहो कि इमिगा मज्झ देवि ! रजेगी। किं वा चउरंगवलेण जीविएणावि किं अहवा? ||५|| जं सुयणु ! तुज्झ विरहे ता तह काहं अहं पयत्तेण । जह तं होसि अरोगा सजीवियवपि दाऊण ॥६॥ इय पणयप| उणक्यणेहिं पिययम संठवेवि नियगेहे। रन्नाऽऽगम्म सुमरिया कुलदेवी भणइ नरनाहं ॥७॥ किं मुमरियऽम्हि रायाऽऽह पसीय | दइयं करेसु नीरोगं। देवी-सक्केणवि नहु सक्का देवी काउं अरोगत्ति ॥८॥ ज पुत्वभवे जीवेणऽणुट्ठियं रागदोसदुट्टेण। अन्नाणपरिगएणं च असुहकम्मं अणिट्ठफलं ॥९॥ तं ओसहेहिं विविहेहिं विवुहनिवहेहिं दाणवगणेहिं । अवहरिउं नह सकइ अवेइयं निययदेहेण ॥१०॥ राया जपइ भयवइ ! इमीइ किं दुक्कयं कयं पुदि । देवी भणेइ वंगाविसए नयरे पउमसंडे ॥११॥ अभयकुमारो सिट्ठी संतिमई नाम आसि से भजा । दुन्निविजिणधम्मपरा गुरुजणसुस्रायणरया य॥१२॥ A अह संतिमई केणवि विसमपओगेण विरसभागय । जाणतीविहु अन्न धम्मजसमुणिस्स वियरेइ ॥ १३ ॥ सोऽवि उबस्सयमा ॥२०॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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