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श्रीदे
प्रणासे सुरेन्द्रदत्त
फथा
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कपि सो खणियखाणिखोणीओ। अजइ अवअवआई वजप हाई रयणाई ॥ २८॥ ताई जरदंडिखंडे पंधिय नियमामहुत्तमह । दैत्यश्री
चलिओ। कत्थवि संतो सुत्तो य सत्थरे जाव पयलाइ ॥२९॥ ताव सहसत्ति तं दंडिखंडमादाय मक्कडो नहो। सीहस्स गंठिबद्धा धर्म संघा-KAL पाणा गयाई स्यणाई ॥३०॥ उइंडदंडखंड उप्पाडिय धाविओस पुट्ठीए । रे उक्कडमक्कड कत्थ जासि मारेमि हय मणिरो ॥३१॥ चारविधौ
अवरावरतरुवरसिहरसेणिसंचरणओ लहु पवंगो । कत्थवि निवडियगंठी नयणाण अगोयरं पत्तो॥३२॥ हा हा हओ म्हि रे दिव! ॥१९९॥ दाख्यो दुअणस्स व तुहेसो । निक्कारणओ निक्करुण कोऽपि भइ बहरवावारो ॥३३॥ रयणुचएण इमिणा परिस्सं किर मणोरहे
नियए । कह फविरूवेण अरे मुट्ठो थट्ठो य दुट्ठ तए ॥ ३४ ॥ हिययं असरिसहरिलेण विलसइ हयविही उ विहडेइ । विलसइ सयलकलाहि कलानिही गिलइ अहह तमो ॥ ३५ ।। इस झूरंतो द? कुओऽवि आगम्म जोगिणा एसो। कालुणिएण व वृत्तो वच्छ ! तुमं कीस दीणोसि ॥३६॥ तेजवि नियवुत्चंतो वृत्तो तो जोगिणा इमो भणिओ। लहु एहि मए सद्धिं रससिद्धिं जेण तुह देमि ॥३७॥ तो तेण समं चलिओ सीहो पत्तो कमा विवरमिक्कं । रसकूबीइ पविट्ठो मंचीए गहिय रसतुंबं ॥३८॥ रसयरियतुंबओ सो पत्तो रज्जूइ विवरदारमि। चिंतेइ ताव जोगी लेमि रस मरउ एस इहं ॥३९।। अह भणइ इमो अप्पसु रसमुचारेमि जेण तं पच्छा । अबह रसस्स तुम्म व उभयस्स व होदिइपमाओ॥४०॥ निययबलउत्तियो सरसो सुवर्ण तणं व मबंतो। जा जाइ जोइणा सह वा पुण चिंतइ इमो पावो ॥४१॥ मारेमि इमं उररीकरेमि रसमेयमसरिसपहावं । मारिजंतो जइ पुण मारइ तो कि रसो काही ॥४२॥ बहुसामत्येऽवि परंमि अतुलिए को वुहोचडइ समुहो। विवरं विसहररहियंपिजणेइ हिययस्स आसंकं ॥४३॥ ता अइसयवीससि काउमिमं वंचिमुत्ति चिंतंतो। भणइ इमो जइ नजवि इमिणावि रसेण तुह तोसो ॥४४||
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