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________________ श्रीदे HIMIRMANEN ImaHIRAIL चैत्यश्री धर्म संघाचरविधी ॥१९८॥ ANSARIES जोधणसमशुपता ॥ ११॥ ताओ मुणिय गुणगणं मुरिंददचस्स कुमरतिलयस्स । खयरीहिं गिजंतं ससंककंतं पसंतं च ॥ १२ ॥ प्रणामे. कुमरे दहाणुरागा मणसावि अपत्थिरी उ अनं तु । थे पहुणा कुमरकए सयंवरा ताउ इइ पहिया ॥१३॥ इय सोउ निवो तुट्ठो तं सुरेन्द्रदचसक्कारिय मिसं पहाणतरं । कुमरीण जहाउचिए अप्पावद पवरआवासे ॥ १४ ॥ देवन्नुदिन्नदिवसे महाविभूईइ समरसीहनियो । कथा अमरीण पाणिगहणं सुरिंददचेण कारेइ ।।१५।। सक्कारिय संमाणिय महरिहवत्याइणा पहाणनरे। नियनयरेसु विसजह जहोचियं लोयमन्नपि ॥ १६ ॥ अहहिं पियाहि सहिओ सुहासओ बहुसुपचकयहरिसो। कालं वोलद्द सहिओं सुरेंददत्तो सुरिंदुध ।। १७॥ अन्नदिणे तत्थागयजुगंधरायरियपायनमणाय । पत्तो पहिचिनोराया कुमराइपरियरिओ ॥१८॥ कयपंचविहाभिगमो संगयपंचंगपुट्ठमहिवट्ठो। नमिय गुरुं उपविट्ठो इस भयवं वजरइ धम्मं ॥ १९ ॥ “यः सर्वागगुरुप्रमोदपुलका पंचांगभूस्पर्शनो, दुष्टानंगविघातिनो जिनपतेः पादयं वंदते। भुक्वाऽशेषषडंतरंगरिपुजिद सांगराज्यश्रियं, हत्वाऽष्टांगमशेषकर्मपटलं प्रामोत्यसंगं पदम् ॥२०॥" अह पुण्इ नरनाहो पहु! मह तणएण किं कयं सुक्यं । पुनमवे जेण इमो पचो एयारिसं रिद्धिं ।।२२।। मणइ । | गुरू मो नरवर ! सुणेहि इह जंबुदीवमरइंमि। गामंमि पारिभ अहेसि सीहुचि कुलउचो ॥२२॥ जंजं करेइ कम्मं तं तं सयलंपि होइ से विहलं । देसंतरगमणाई बुनो तो चिंतए चिचे ॥२३॥ किमहं करेमि निम्मम्गसेहरो हयमणोरई विहीणो। सीहोऽवि हहा होऊण जंबुओवि हुन निद्धडिओ ॥ २४ ॥ देसंतरंमि जाही मम रुद्ददरिद्ददुक्खदंदोली । अहह हहा सा उ ममं तत्यपि पुरजो पडिखेइ ॥२५|| दीसंति मंतसिद्धा अंजणसिद्धावि कहवि दीसति । दारिहजोगसिद्धा पुरवि ठिया न दीसंति ॥ २६ ।। | अइद अनिव्वेओपिय सिरीइ मूलति चिंतिउं पुहवि । इचो तत्तो भमिरो सो पत्तो रोहणगिरिम्मि ॥२७॥ अवगविसरपषिदिवसो ||
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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