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श्रीदे● चैत्य०श्रीधर्म० संघाचारविधौ
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वंछियाई पूरंतो दूरंतो रिउद कमसी पत्तो दिणीयपुरिं ॥ ९३ ॥ तत्थेगं गिरिमुत्तुंग चंगसिंगग्गभग्गरविमग्गं । पिच्छवि रत्नसारकथा पुच्छर सुमई मिर्च को एस गिरिवरो १ || ९४ || "सो आइ सामि ! एसो अट्टावयपव्वओ जयपसिद्धो । इइ दससहस्ममुणिवरसहिओ सिद्धो रिसहनाहो ॥ ९५ ॥ यस्तुवरिं सिरिभरहकारियं एगजोयणपमाणं । जिणभवणमत्थि कलियं चउवीसजिगिंदपडिमाहिं ॥ ९६ || तह एगो मह धूभो नवनवईभायनवनवह थूमा । संति इह सामिइखागसेसमुणीणं तिधूमा य ॥ ९७ ॥ वह सत्तुंजयसिद्धा भरवंसनिवई सुबुद्धिणा सिट्टा । जह सगरसुयाणऽट्टावएत्थ तह कित्तियं धुणिमो ॥ ९८ ॥ ( इह अट्ठावयसेले सगरसुयाणं सुबुद्धिसचिवेण । जह भरहवंसज निवा सिट्ठा तह किंचि कित्तेमि) ।। ९९ ।। आइञ्चजसाइ सिवे चउदसलक्खा उ एगु सव्वट्टे । एवं जा इक्किक्का असंख इय दुगतिगाईवि ॥१००॥ जा पन्नासमसंखा तो सङ्घटुंमि लक्खचउदसगं । एगो सिवे तहेव य अस्संखा जाव पण्णासं ॥ १०१ ॥ तो दो लक्खा मुक्खे दुलक्ख सव्वट्टि मुक्खि लक्खतियं । इय इगलक्खुत्तरिया जा लक्ख असंख दोसु समा ॥ १०२ ॥ तो इगु सिने सन्वट्ठि दुन्नि ति सियंमि चउर सन्त्रट्टे । इय एगुत्तरवुड्ढी जाव असंखा पुढो दोसु ॥१०३॥ तो इगु मुकूखे सव्वट्टि तिनि पण मुक्खि इय दुरुत्तरिया । जा दोसुऽविय असंखा एमेव तिउत्तरा सेढी ॥ १०४ ॥ विसमुत्तरसेदीए हिडुवरि ठविय अउणतीस तिया । पढमे नत्थिक्खेवो सेसेस सिया इमो खेवो ॥ १०५ ॥ दुग पण नवगं तेरस सतरस बावीस छच्च अद्वेव । बारस चउदस वह अट्टवीस छन्वीस पणवीसा ॥ १०६ ॥ एगारस तेवीसा सीयाला सयरि सतहत्तरिया । इगदुगसत्तासीई इगहचरिमेव बावट्टी ॥ १०७ || अउणुत्तरि च ( ग्रंथ ३००१) वीसा छायाला तह सयं तु छब्बीसा । मेलित्तु इंगंतरिया सिद्धीए वह य सब्बट्ठे ॥ १०८ ॥ अंतिचंक आई ठविउं बीयाइ खेवगा तहय । एवमसंखा नेया जा अजियपिया समुप्पन्नो ।। १०९ ।
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