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________________ चैत्य श्री धर्मः संघा चारविधी १८९|| निम्मलो परवसेण साहीणो। कीरइ परोवयारो तणुणा जइ तो न कि पजत्तं ७६।। एईई अहो करुणा अहो रसारकथा | विवेओ अहो तबो य पिई । इय चितंतो तत्तो पचो खयरो सठाणमि ॥७७॥ साऽविहु अयगरगसिआ पंचनमुकारसुमरणपहा णा । मरिऊण पढमकप्पे जाओ सामाणिो देवो ।। ७८ ॥ विहरंवजिपवराणं निसुकतो देसणं सवणसुहयं । विहिणा उ बंदणाए बंदतो सासयजिणिंदे ॥७९॥ अवाहियाइमहिमं नंदीसरपमुहगिरिसु कुवंतो। केवलिमुणी नमंतो नियमाउं पूरए तत्थ ॥८॥ कालेण चविय तत्तो तो सो सिरिखेण नरवरंगरुहो । पडिपुननसारो जाओसि तुमं रवणसारो॥ ८१ ॥ सो पुण समरम्मि मओ अणंगसिहखेयरो भवे भमिउं । अधिणिय किंपि सुकयं संजाओ सीइसेणनियो ।।८२॥ जो अयगरं हणतो खयरो उतया भवं भमिय तचो । किंचि कयमुकपदसओ जाओऽसि पयात्रसूर! तुमं ॥८३।। पुखमवन्भासाओ इत्थीलोलेण सीहसेणेग । सोउं रूवं ।। आणाविया उ एसा मयणरेहा ।।८४|| इय कुमर ! तुह पोलो फुरिओ नियुएवि सीहसेणनिवे । तह पदम चिय दिद्वे पयावसूरे अइसिणेहो ॥८५॥ सो चिय अयगरजी मरिउँ भमिउं भवअरबंमि । काऊग किपि कट्ठाणुहागं पुमजम्ममि ॥८६॥ जाओ पढमे कप्पे सीलवइसुरस्स किंकरो अमरो । सो चेव वया समरे कुमर! तुह अकासि साहिजं ॥८७।। इस सोउ जायजाईसरणो कुमरो लहुं मुयावेइ । निवई कलिंगनाई पुब्बभवं सोउ सोवि नियं ।। ८८॥ भुजो मुज्जो खामिय षयावर निवं तहा कुमर । वैर-AV ग्गगओ गिण्डइ दिक्खं चउनाणिगुरुरासे ।। ८९॥ दाउ कुमरस्स रज्जं गुरुवेरग्गा पयावखरोऽवि। दइयाइ मयणरेहाइ संजुओ गिहए दिक्खं ॥९०॥ अह रयणसारराया ते रायरिसी नमित्तु गुरुयेहा। कयकिवं अप्पाणं मतो सगिहमणुपचो ॥९१ ।। कल्यावि सो नरिंदो अदम्भसरयन्भविन्भमजसोहो । दिसिजचाए चलिओकलिओ उरंगसिमेण ॥१२॥ अनमंते नामंतो पपवा NammarAIMNEPARIHARANORAHIMIRAINRNA '- INRN:
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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