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श्रीदत्ता
कथा
श्रीदे. चैत्यश्रीधर्म संघा चारविधौ ॥१६॥
पुरउचि । भणिआ कुमरी हरिणा रइ मुविमाणमारुहह ।। ३३ ।। अह ठाउ हरी गयणे भणेइ दमिआरिपमुहनिवनिवहा ! । भो मुणहऽणंतविरिओ भायजुओ नेइ कणयसिरिं ॥३४॥ मा भणिहिह निवधूयं चोरित्त गयत्ति होउ सत्यधरा। लहु एह मोयह इमं| नियह ससत्तिं उबेहह मा॥३५॥इय घोसिय ते चलिया सपुरि पइ तं च सोउ दमियारी। आरागहिउव्व गओ कोबजुओ सयलबलकलित्रो | ॥३६॥ चलिओ सि पिट्ठीए कोऽयं महिगोयरोत्ति भणमाणो। अह तेसि तया जायाणि सीरवणुहाई रयणाणि ।। ३७ ॥ तोविजाइरएउं
दुगुणवलं ते ठिया चलियऽभिमुहा । भग्गं तेहि परबलं दनियारी जुज्झइ मयं तो॥३८॥ सरियागए उचक्के भगइ हरे रे मरिस्ससि इहं | तो। अञ्जवि मह धूयं मुत्तु जाहि दुन्बुद्धि ! मुक्कोसि ॥३९।। पाणेऽवि तुह सुयंपिय गहिय गमिस्संति स भणिो हरिणा । मुंचइ चकं | तत्तुंवआहओ मुच्छिओ विण्हू ॥४०॥ बलबीरिओ पुणुट्ठिय तं चकं पासगा गहिय भणइ । दमियारि ! जाहि अञ्जवि कणयसिरिपियत्ति मुक्कोसि ॥४१।। दमियारी भणइ अरे वत्रहरियधणेण धणवमत्रमण्णे । लहु मुंच इमं चकं सपोरिसंवावि मा मरम् ॥४२॥ अह तच्चकेण हरी पडिविण्ङसिरं लुणेइ कुद्धो तो । उप्पणो विण्हू इय भणिया कुसुमे किरंति सुरा ॥ ४३ ।। तो नमिरनिवइनिवहा सपुरि पद गच्छिरा बलहरी ते। कणयसिरिस्स समीवे पत्ता खयरेहिं इय वुत्ता ॥४४॥ मा पहु आसायणमिह करेह जिणचेहआणि संति जओ। ताणि उ जहाविहीए वंदिय गच्छंतु पहुपाया ॥ ४५ ॥ तो हरिमविअसियमुहा सपरिकरा ते नहाउ ओवरिउं । भत्तीइ चेहआई हवंति पूयंति पणमंति ॥४६॥ वरिसोववासपडिमं तह कित्तिधरं नियंति तत्थ मुणिं । अमरेहि महिअंत तकालुप्पभवरनाणं ॥४७॥ तं दटटु सुट्ठ तुट्ठा तिपयाहिणपुवयं नमिय नाणिं । निसियंति उचियठाणे तो भयचं कहइ इय धम्मं ॥४८॥ | "इह निन्बुइपरमंगाणि जंतुणो दुल्लहाणि चत्वारि । मणुयत्तं धम्मसुई सद्धाणं संजमे विरियं ॥ ४९ ।। चुलसीइलक्खजोणिसु बहु
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