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श्रीदत्ता
कथा
श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ ॥१६२॥
ओ भणइ एवं ॥१७॥ भो निल्लजा नऽञ्जवि पेसह चेडीउ ताउ नियपहुणो। बलिणा समं विरोहं कुणमाणा मा विणस्सेह ॥१८॥ | यतः-"अनुचितकारंभः प्रकृतिविरोधो बलीयसा स्पर्धा | प्रभुवचनेऽपि विमर्शो मृत्योराणि चत्वारि
॥ १९ ॥" सामेण तेहिं भणियं नणु दमिआरिस्स सव्वमवि देयं । जब चेडीहि विभूसइ ता गच्छज्जेब गहिय इमा॥ २० ॥ इय भणिय दाउ यस्स मंदिरं तो दुवेविए बंधू । सामरिसा दिवो सो दमिआरित्ति मंतन्ति ॥ २१॥ कुलमंतिसु रजभर आरोविअ काउ चेडिरूवं तो । सह दएण गया ते दुन्निवि दमियारिनिवपासे ।। २२ ॥ संभासिअ तेणुचित्रं मायावेडीउ ताउ भणियाओ । कणयसिरिं मह ध्यं वरनदृणं रमावेह ॥२३॥ आमंति भणिय ताओ गंतुं तीए पुणो अभिनयंति। वरनर्स्ट तस्सग्गे अणंतविरियं च गायंती ॥२४॥ कणगसिरी भणइ हला गिजइ पुरिसुत्तमो इमो को णु । कहइ परा इय चेडी मयसि ! इह अत्थि सुभनयरी ॥ २५ ॥ तत्थासि थिमियसागररण्णो अपराजिओत्ति जिहसुओ । गय १ वसह २ ससी ३ सागर ४ चउसुमिणयमइयबलत्तो ॥२६॥ सिरि १ हरि २ रवि ३ घड ४ रयणो ५ जलहि ६ सिहि ७ सुमिगमूइयहरित्तो। बीओ सुओ
अवीओ गुणेहि सेऽणतविरिउत्ति ॥२७॥ नियरूवविजियमारो कयरिउमारो थिरत्तगिरिसारो । लच्छी इव सागरो जह भूवि अमो | तारिसो नत्थि ॥२८॥ इअ सोउ पुलहआ सा साहब नारी पुरीइ सा धन्ना । सो जीइ पहु अहमवि तं पासिस्सं नणु कयावि ॥२९॥
आह बलो तो विजाइ तं इहाणेमि सुयणु ! सा मणई । लहु पसिअ कुणसु एवं तो ते पयडंति निअरूवं ।। ३०॥ सा दऽनंतविरिअं जंपइ निअसेविगाइ आइसह । भणइ हरी ता उट्ठह सुभगे ! जामो मुभं नयरिं ॥३१॥ भगइ कुमरीवि पभवह पाणाण व किंतु मह पित्रा काही । विजावलिओऽणत्थं तुम्हें न निएमि निरवायं ॥३२॥ मा वीहि भीरु कयरो सो तुजा पिया इहऽम्ह
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॥१६॥
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