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________________ श्रीदे धर्म० संघा. चारविधौ || ॥१२५| जाइ संमुह तह सगट्ठपए ॥२१॥ बंदिय निमंतिउं आसणेण पुच्छे आगमणकज्जास भगइ भई। संखुव निरंजणो कत्थलोसंलो ||२२॥ सा जंपइ पोसहिओ पोसहसालाइ अस्थि तो गंतुं। तिपमज्जिय पयभूमि गमणागमणाइ पडिकमद ॥२३॥ जोडित करे | वंदित्ति मणिय नामित्तु मउलिमिय संखं । वंदिय नमंसिउं भणइ पुरुखली पुक्खलपमोओ।॥२४॥ यदुक्तं भगवत्यां द्वादशशतक-IVA प्रथमोद्देशके-'गमणागमणाए पडिकमइ,संखं समणोवासयं बंदइ नमसइ,वंदित्ता नमंसिचा एवं वयासी-संख! असणाइ सम्वंतं सिलु एह लहु तओ उन्मे । स भणइ पोसहिओऽहं भद्द! तओ तत्थ सिच्छा मे ॥ २५ ॥ इय सुणिय पुक्खली तं कहेइ सड़ाण संखवुत्तं । मणयं कसाइया ते भुजति तओ तमसणाई ।। २६ ।। संखो निसाविरामे चिंता नमिउं पहुं पभाए मे । धम्मं सोउ निअत्तस्स पोसहं पारि सेयं ॥२७॥ यदागमः-'तए गं तस्त संखस्स समणोवासगस्त पुवरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं | जागरमाणस्स अयमेयारूवे अन्मथिए चितिए पत्थिए मणोमाणसिए संकप्पे समुप्पज्जित्था-सेयं खलु मे कलं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगकिंसुयमुहगुंजद्धरागसरिसे कमलायरसंडबोहए उहियम्मि मरे । सहस्सरस्सिमि दिणयरे वेयसा जलंते समणं भयवं महावीरं वंदित्ता नमंसिता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तएति ।। कटु एवं संपेहेइ । अह गंतु पए सगिहं परिहियमंगल्लवत्थपयचारी । पविसिय अहिगमवजं ओसरणे नमइ वीरजिणं ॥२८॥ उक्तं च-"पायविहारचारेणं सावत्थि नयरिं मज्झमज्झेणं जाव पज्जुत्रासइ,अभिगमो नत्थि" तेऽविहु सडा पहाणाइ काउ मिलिऊण नमिअ वीरजिणं । संखंते विंति जह तुम कल्लंमि तयं सयं वुत्ता ॥२९॥ पच्छा पोसहमजिमिय सयमेव गहेसि ता तुमं नूणं । अम्हे हीलसि निंदसि खिंससि गरिहसिऽवमसि ॥३०॥ तत्थ-जच्चाइएहिं हीला मणसा निंदा परुक्खओ खिसा । गरिहा तस्स Ramailonomi-HadamishanNEL PECINIANCHAMITIANIMACHILIUpani AmARE ॥१२॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
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