________________
श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघा
पुष्कली| श्रावत
चारविषौ
॥१२॥
वीरजिणं नमिउं ते नियंति निसुगंति पहुययगं ॥४॥ पुच्छह गोयमसामी केनं विहिणा पह पढिय सुतं । धम्मागुहाणमिमं कीरद वित्थंमि कहा पा ॥५॥ विग्धक्खयमंगलत्थं हिअट्ठारद्धपारगमणत्यं । पढममिह पंचमंगलसुत्तमहिज्जिज तो इरियं ॥६॥|| गोयम! जेण न कप्पइ काउं इरियाइअपडिकंवाए। चिइवंदगाह किंचिदि तप्फलसायामिलासीणं ॥७॥ जं ममणागममाई गालोइय अपडिक्कमिय पाएण। न हवइ मणएग तयभावे किह सुधम्मफलं ॥८॥ जइया गमागमाई आलोइयनिंदिऊन मरहिचा । हा दुटुम्हेहिं कयं मिच्छादुक्कडमिय भणित्ता ॥९॥ तह उस्सग्गेणं तयणुरूवपच्छित्तमणुचरिचाणं । जो आयहियं चिड़वंदणाइऽणुहिज उवउचो ॥१०॥ तइया उ परमएगग्गमणसमाही हविज तस्स तओ। इटफलसंपया तो पुर्वि इरियं पडिकमिजा ॥१२॥ अविय-देवच पवित्रं करेइ जह काउ बज्झतणुसुद्धिं । भाववर्णपि हुजा तह इरियाए विमलचिते॥१२॥ तो रिहवंदणसामाइयाइ सु अहिज सेसंपि। देवविअधम्मच्चिअरउत्ति धम्मी पसिद्धमिणं ॥ १३॥ एवंति मणिय गोयमपर पहुं नमइ तेऽवि तह सड्ढे । वंदिय जिणं नियचे भणेइ संखो निरवकंखो ॥१४॥ भो भो उवम्खडावह विउलं असणाइ तं च जिमिऊण । विहरिस्सामो गिण्हित्तु पक्खियं पोसह संमे ॥ १५ ॥ तेसुवि तहेव भणिउं सट्ठाणगएमु चिंतए संखो । नो खलु कप्पइ तं मम | विउलमसणाइयं सुतं ॥१६॥ किंतु विमुक्कालंकारसत्थक्कुसुमस्स भयारिस्स। एगागिस्स उ पोसहसालाए पोसह पित्तुं ॥१७॥ पुच्छित्तु उप्पलं तो संखो गिण्हेइ पोसह इत्तो। ते मिलिअ सावया लहु असणाइ उवक्खडाविति ॥ १८ ॥ जंपति य मो महा। |संखेणु जहा जिमेऊण । विहरिस्सामो गिण्हित्तु पक्खियं पोसहं अम्हे ॥१९॥ ता कि अजवि संखो नएइ अह आह पुस्खली | सइदो । जाणेमि तं निमंतिय ता तुम्भे ठाह सुविसत्था ॥२०॥ इय भणिय संखगेहे सो पत्तो तं च उप्पला इंतं । दई अन्डइ |
॥१२४॥