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नमिविनमिवृत्त
श्रीदे० चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ | ॥१७॥
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वजनाहबाहुसुबाहुपीढमहपीढा । सबहि भरहि जिणचक्कि भुयबली थीदुगं होही ॥ १०२ ।। तो सहरिसं साहसं उत्तरियमणुत्तरं | तिलोयपहुं । नमइ तिपयाहिणं सो पयाहिणं दिजमाणगुणो ॥१०३।। कुमलो कोसल्लागय इकसुरसं सुहरसं सुहासरिसं । पारावइ जयनाहं पणदिव्वाविन्भवसणाहं .१०४॥ कहमेयं ते नाय ? तत्थ तयागयनिवाइणा पुट्ठो। सिजंसो भणइ अहं भमिओ पहुणा सहऽभवे १६॥ तेहिं कहति पत्ते भणइ इमो घाइखंडदीमि। पुवविदेहे पुर्वण मंगलावइयविजयंमि ॥७॥ नागिलनागसिरिसुया सत्त सलकखण सुमंगला धन्नी । सुम्भी उन्मी छाडी निनामिय नंदिगामंमि ||८|| घण वरभोयण माउय पिटेंबरतिलयगिरि फलत्थगया । सूरिजुगंधरदुहपुच्छ चउगइ धम्मं च वंभधरा ॥९॥ अणसण ललियंग नियाण संयंपहेसाण सिरिपहविमाणे पुंडरिगिणी जिणचक्किवइरसेगस्म गुणवइए ॥१०॥ सिरिमइघिय मुरदंसण जाइसरण मउण भंडिगा चित्तं । जिणवरिसमहे लोहग्गलसामिवनजंघपरिणयणं ।।११।। सरवण सुमाहुदाणं सुप विसमियगिहुत्तर सुहंमे। वच्छावई पहंकरपुरी अभयघोस विजसही ॥१२।। पन्नवाणि पुन केसव मुणिजागर दिख अच्चुयसमाणा । पुंडरिगिणीइ वजनाह सारही दिक्ख सबढे । ॥१३॥ जिणवइरसेणपासे सुयंति भरहे जिणो बहरनाहो । होही पढमोत्ति तं तं दटु पहुं मे सुमरियं तं ॥ १४ ॥ जओ-सवेवि | | जिणा इगदेवदूसरूवे हवंति जिणलिंगे। न य अन्नतिथिलिंगे न साहुलिंगेन गिहिलिंगे ॥१५॥ निन्नामि ललिंग सयंपही सिरिमइ वजजंघुर नर३ सुहमे ४। केसवऽभयघोसा५च्चुय६ सारहि वजनाह७ सबढे८॥११६।। तेऽवितओ सुयविहिणा भत्ता भत्तीइ दिति भत्तीई। पहुपयठाणे पीढच्चणादिगरमंडलपसिद्धी ॥१७॥ रहचकवालनयर णमी ठिओ उत्तराइ दाहणओ। सिरिगयणवल्लहपुरे विनमी पुण धरणवयणेण ॥१८॥ सब्वेसुवि नयरसुं नमिविनमीहि फुरतभत्तीहि । ठविओ सिरिरिसइजिणो घरणिदो नागराया
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॥७॥