SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Hain श्रीदे चैत्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ अग्रपूजाया हरिकूटसंबंध: MINISTRATISAPANINEMATIONS HAPATRAJIRALIPARISHAILAIN, अनिलजसाइ वाउरहखेयरेसरससाए । ललियपुरा वसुदेवो आणिय मुक्को गिरिम्मिक्के ॥१॥ पुच्छइ तं सुअणु! तए आणिो कत्थऽहं ? कहइ अह सा । सीमणगगिरी एसो हिरिमंतोत्तिय पवुच्चइ य ।।२।। एयसिरंमि य एवं निम्मवियं धरणनागराएण। नाभेपजिणाययणं धरणुब्भेयंति भण्णइ य ॥ ३ ॥ पडिमोवगयस्स इहं किर आइगरस्म भगवओ पुरओ। नमिविनमीणं पढम | | विजा दिन्ना धरणरना ॥४॥ तह ठविश्रा मजाया अरिपि जो इह गिरिम्मि वसमाणं । अभिभवइ सो उ सहसा कुलेण सह लहु |विणस्सिहिद ॥५॥ अयलवलभद्दकेवलठाणे बीयं इमं जिणाययणं । कारविअंसिरिविजएण अमियतेएण तइयमिई ॥६॥ सत्तुअगम्मित्ति इहाणीया सीमाणगे बलासन्ने । तुम्हे अह वसुदेवो नागुम्भेयं गओ हरयं ॥ ७ ॥ हाउ तहिं जिणभवणे गंतुं वंदित्तु चेइए विहिणा । सुइरं च पज्जुवासिय विणिग्गओ सायसमयंमि ८॥ गंधग्वेण विवाहिअ अनिलजसं निसमइक्कमिय गोसे । गहिय जलथलजकुसुमे तह नलिणदलेहिं वरसलिलं ॥९॥ पत्तो जिणभवणेसुं दारे उग्घाडिउं पविसिउं च । निस्सीहियाइवि देणा पमजियाई जिणहराई ॥१०॥ कयसमजणविलेवणे पूइऊण जिणपडिमे । अरणिमहणेण अगणि उप्पाइय दाउ धूवाई ॥ ११ ॥ वंदित्तु | चेइयाई विहिणा सुइरं च पज्जुवासित्ता । पिहियदुवारो सपिओ विणिग्गओ जिणगिहेहितो ॥१२॥ एवं सो पइदियहं कुणमाणो| सप्पिओ वियरमाणो । गिरिकंदरासु वंतरसुरुव्व कालं गमेइ सुहं ॥१३।कइया निएवि हयगयरहखयरविमाणपरिगयं गयणं । भणइ पिए! खयरजणो ससंभमं एइ किमिह इमो?॥१४॥ अनिलजसा-इह अज जिणहराणं वरिसमहो एगराइओ एत्तो । अनोवि होइ अट्ठाहियामहो इत्थ सुमहल्लो ॥१५॥ अत्र च वसुदेवहिंडिअक्षराणि-"एवं तीए भणियं-अअउत्त! इत्थ विजापढमप्पयाणभूमीए जिणाययणाणं संवच्छरुस्सवो एगराइओ संपत्तो, अन्नोऽविय होइ महो इत्थ तत्थ अट्ठाहिया होइ महिम"त्ति, तथा SIMPREHRADUNIAAIIANNUPERHITAL ॥८६॥
SR No.600278
Book TitleChaityavandanbhashyam
Original Sutra AuthorDevendrasuri, Dharmkirtisuri
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1988
Total Pages490
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy