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अग्रपूजायां हरिकूट
संबंध:
विधौ
श्रीदे० चै-10 व दाणयो वा परोक्यारिल्लो । कारुण्णपुण्णहिअयो वसणमिणं जो निवारेइ ॥२८॥ दीणालावेहि न नेव रोइएहिं न चित्ततावेहिं । त्यश्रीधर्म पुकरिएहिं न केणवि विहिम्मि विमुहे हबइ ताणं ।।१९।। इय सूअंतोब तओ साडिअखंभुव तं च सोअरवं । कत्तिय पुण्णजणमणोरहोब संघाचार
विलयं गओ पोओ॥६०|| जलसंगयं दुरतं विहडियसंधि च तुगुणजालं। कुकलत्तं व कुजाणं सत्थाहेणं खणा चत्तं ॥६१।। फलि
हमहिलहिय जलहिं तरिउं सीहे पुरंमि सत्थाहो। गंतुं पुरोहियगिहे मग्गइ निक्खेवयं निययं ॥६२।। कलुसमई सिरिभई बहु मग्गंत ॥७२॥
| तयं कडगिराहिं । निन्मस्थइ कोऽसि तुमं? अरे तया किं कया मुकं ॥ ६३ ॥ तो रायकुलं स गओ तहिमलहंतो पवेसमणुदि| यह । रायदुवारे भणई नासं मे हरइ सिरिभूई ॥ ६४ ॥ तं सोउं रण्णा पुण सिरिमुइ पुट्ठो भणेइ सामि ! इमो । नूणं नामन्मंतीह | | पलवेई किंपि सुन्नमणो ॥ ६॥ सिरिभूइणा अणाहो मुसिओऽहं णाह ! रक्ख रक्खत्ति । विलवंत भमंतो सो पुण दिवो निवइणा |
कहवि ।।६६।। जायकरुणेण पुट्ठो तो सदाविय सुबुद्धिवरमंती । कह नेयमेयमह तेण भद्दमित्तो गिह णीओ।'६७॥ निक्खेवस| क्खिदिवसाइ पुच्छिउं लहिय दंसिओ रमो । भणियं देव ! भविस्सइ एवं एवं पयडमेयं ।। ६८।। गहिय पुरोहियमुई अलक्खियं निवइणा रमंतेण । निउणमई पडिहारी तमप्पिउं पेसिया तो सा ॥६९।। गंतुं पुरोहियगिहे तन्मजं भणइ तुह पिएणुत्वं । मुद्दमिम अप्पिय भद्दमित्तनिउलं जहा णेहि ॥७॥ तं तीय अप्पियं सा गहिय निवस्सोवणेई तेण तओ। नियनिउलंतो खिविउं भणिओ. गिण्डत्ति मत्थाहो ॥ ७१ ॥ सुपसाउत्ति भणंतो सतोसतो सो गहेइ नियनिउलं। निवासिओ विडंबिय नयराउ पुरोहिओ इत्तो ॥७२॥ अद्द सोउ भद्दमिचो निक्खेवं गहिय नियपुरं जंतो। चिंतइ कह जलहीओ इह जीवंतो अहं पत्तो ?।।७३।। ता ववहारेण अलं वित्तं तु इमं कहिंचि सुहखित्ते । वइऊण पवइस्सं सुत्तो इस चिंतिरोरणे ॥७४॥ अह परसियरस सोगेण वस्स.माया अहोनिसं बहुमो।
NOMIHARI
MA
॥७२॥
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