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श्रीदे.. त्यश्रीधर्म० संघाचारविधौ
अग्रपूजायां हरिकूटसंबंध:
| ॥४०॥ अइउम्मडरिउभडकोडीकरडीकरडयपाडणपडिट्ठो। सीहोद सीहसेणो तत्थाऽसि वसुंधरानाहो ॥४१॥ तस्सासि रामकण्हा दइया दुहिआ उ जा अदुहियावि । पोयणपुरसामियपुण्णभद्दहरिमईयदेवीणं ॥४२॥ चउबुद्धिविसुद्धसुधासिंधुसचिवो सुबुद्धिनामो से । आसी गुरुयविभूई पुरोहिओ तहय सिरिभूई ॥४३॥ अह पउमिणिखेडा तत्थ आगओ भवमित्तसत्याहो। सायरवाणिजे सञ्जमाणसो चिंतए एवं ॥ ४४ ॥ निवडंतमहंतसयावयागरो सागरो इमो रुंदो। कित्तिमकयसंधिच्छिद्दवज्जियं जाणवत्त-| मिणं ॥४५॥ पवणेरियकमलदलग्गजललवचवला तहा इमा कमला। एसो सुघडियविहडणपयडपयावो विहि हयासो ॥४६॥ अकयअखंडियसुकया पाएणं पाणिणो इमे तत्तो। न मुणिजइ किह जलहीउ आगओ इह पुणो होही १॥४७॥ ता मज्झ सबसारेण सायरे नेव संपयं गंतुं । किंतु चिय मुत्तुं किंचि नायपचयकुले कमि ॥४८॥ इय चिंतिय अन्भस्थिय सिरिभूई तस्स मंदिरे सोउ। वीसत्थो वीसामइ नियमुद्दामुद्दियं नउलं ॥४९॥ तो वेलाउलपचो सजियपोओ समुद्दकयपूओ। चलिओ पसत्यदियहमि भद्दमित्तो तो कइया ॥५०॥ उल्लालियकल्लोलो जलनिहिजलनिवहजणिआवत्तो। तस्स उ अपुनपसरोव पसरिओ कालियाबाओ।॥५१॥ अहबहलगवलकजलसामलकार्यविणीकलावेण । पच्छाइयं नहयलं कुपुरिसअयसेण वखणेण ॥५२॥ धीरेयराण चरियं व अवधीरिय धीरमाधुरं धणिरा । धाराधरा धराए खलब उन्नइपयं पत्ता ॥ ५३ ॥ खणमित्तदिनहा अइचवला पाडियसयलआसा । तह विज्जुला चमक्केइ पवंचपुण्णाण रिद्धिव ॥ ५३॥ अह उप्पायनिवाए खणे खणे कुणइ सायरो गयणे । नावा नावइलंखयधूया सिक्खेइ नहः विहिं ।। ५५॥ अकडफुडियभंडभंडअइविरसमुक्ककंदं । अकंदंति परोप्परकंठविलग्गा अतो लोगा ।। ५६ ॥ हा ताय ! रक्ख । | रक्खसु हा संपइ माइ! कह भविस्सामो १ । कुलदेवयाउ तुम्हिवि हा इण्हि कत्थवि गयाओ? ॥५७॥ हा नत्थि कोवि देवो
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HAMARIA NIAlli Nilmala millium
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॥१॥