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________________ ॥७५१॥ TE स मिचुर्य पुनरेवंभूतं प्रतिश्रयं जानीयात् , तद्यथा-मसागारिक साग्निक सोदक, तत्र स्वाध्यायादिकने स्थानादि न विधेयमिति ॥ तथा- . से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा गाहावइकुलस्स मझमझेणं गंतु पंथए पडिबड घा नो पन्नस्स जाव चिंताए तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा सेज्जं वा निसोहियं वा चेइज्जा ॥ सू० ९२॥ यस्योपाश्रयस्य गृहस्थगृहमध्येन पन्थास्तत्र बह्वपायसम्मवान्न स्थातव्यमिति ॥ तथा से भिक्ख वा २ से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा, इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अनमन्नं अकोसंति वा जाव उद्दवंति वा नो पन्नस्स जाव चिंताए, सेवं नच्चा तहप्प. गारे उपस्सए नो ठाणं वा ३ चेइज्जा ॥ सू०९३ ॥ से भिक्खू वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, इह खल गाहावई वा जाव कम्मअरीओ वा अन्नमन्नस्स गायं तिल्लंण वा नवनीएण वा घएण वा वसाए वा अन्भंगेति वा मक्खेंति वा नो पण्णस्स जाव चिंताए तहप्पगारे उवस्सए नो ठाणं वा जाव चेइज्जा ॥ सू० ९४ ॥ से मिक्स्व वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणिना-इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अनमनस्स गायं सिणाणेण वा कक्केण वा लद्देण वा वण्णेण वो चुण्णेण वा पउमेण वा आघंसंति ७५१ ॥
SR No.600274
Book TitleAcharanga Sutra Satikam Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1980
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size8 MB
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