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________________ . ॥७२५ ॥ . | परोधिनि समविषमादौ प्रतिश्रये साधुना निर्जरार्थिना स्थातव्यमित्ययमर्थाधिकारः ३ ॥ गतो नियुक्त्यनुगमा, अधुना सूत्रानुगमेऽस्खलितादिगुणोपेतं सूत्रमुचारयितव्यं, तच्चेदम् से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखिन्ना उवस्सयं एसित्तए अणुपविसित्ता गाम वा जाव रायहाणिं वा, से जं पुण उवस्सयं जाणिजा सअंडं जाव ससंताणयं तहप्पगारे उक्स्सए नो ठाणं वा सिज्ज वा निसीहियं वा चेइज्जा से भिक्खू चा से जं पुण अवस्सयं जाणिजा अप्पंडं जाव अप्पसंताणयं तहप्पगारे उवस्सए पडिलेहिता पमजित्ता तओ संजयामेव ठाणं वा ३ चेइजा २। से जं पुण उवस्सयं जाणिजा अस्सि पखियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पोणाई ४ समारब्भ समुद्दिस्स कोयं पामिच्चं अच्छिज्जं अणिसह अभिहडं आहह चेहए, तहप्पगारे उवस्सए पुरिसंतरकडे वा जाव अणासेविए वा नो ठाणं वा ३ चेइज्जा ३ । एवं बहवे साहम्मिया एगं साहम्मिणिं पहवे साहम्मिणीओ४। से भिक्ख वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा अस्संजए भिक्खुपडियाए षहवे समणमाहणअतिहिकिविणवणीमए पगणिय २ समुहिस्सतं चेव भाणियब्वं ५ । से भिक्ख वा २ से जं पुण उवस्सयं जाणिज्जा, बहवे समणमाहणअतिहिकिविणवणीमए पगणिय २ समुहिस्स पाणाई'४ जाव चेएति, तहप्पगारे उवस्सए अपुरिसंतरकडे ॥७२५॥
SR No.600274
Book TitleAcharanga Sutra Satikam Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1980
Total Pages466
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_acharang
File Size8 MB
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