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________________ चन्द्रप्रभस्वामि चरित्रम् 1135811 I नव्यामोहो न मओ न य चिंता न वि य खेयमेया वि। न विसाओ न वि निंदा कया वि अरई न य खणं पि ॥ १७४ ॥ केवलममंदआणंद-अमयसेएण अक्खयसरूवो । नीरंजणो थिरप्पा जीवो रयणप्पईवो व्व ॥ १७५ ॥ लोयालोय अंतर-समत्थसुपसत्थवत्थुवित्थारं । उज्जोयंतो चिट्ठा, सया वि अक्खंडियप्पसरो ॥ १७६ ॥ ता तुम्मेहिं तत्थ य जईयन्त्रं सव्वहा वि नाऊण । संसारमसारं चिय सव्वं धणरज्जभज्जाइ ॥ १७७॥ तो पुट्ठो भए सो साहू मयणसुदरनिवेण । जाणामि न याणामि, ईय पयअत्थं मुणी कहइ ॥ १७८ ॥ मं जोवणपडिरूवं, दट्ट्णं तुह प्पियाह तो भणियं । किं खु सवेलाइ हुयं उस्सूरं मुणिवरिंद ! तुह ॥ १७६ ॥ नाओ म वि अत्थो जं वत्तणउचियमिह तमिहि । किं गहियं वयमेयं ईय परमत्थो य पसिणस्स ॥ १८० ॥ जायस धुवं मरणं, ईय जाणामि य परं न याणामि । होही कया य मज्झं ईय संदेहे वयं गहियं ॥ १८१ ॥ जइ जीवियं भविस्सइ चिरं तओ कम्मनिज्जरा होही । अह मरणं तो वि सुहं जिणवर दिक्खं पवन्नस्स ॥ १८२ ॥ आयनिऊणमुत्तरमेयं साहुस्स सो निवो तत्तो । सोहग्गसुदरीए सह गिण्हड गिहिवयाईं च ।। १८३ ॥ तो पण मिऊण साहुं आयासे मयणसु दरो पत्तो । अक्खंडपयाणेहिं पत्तो य मनोरमं पुरियं ॥ विछण पविट्ठो राया सोहग्गसुंदरीनाहो । गमिऊण धवलहरयं संभासह मंतिपमुहजणं ॥ नियरज्जं छड्ड े उं गओ य देसंतरं मि एगागी । पत्तं तत्थ वि रज्जं पुण्णपहावेण तेण फुडं ता पुणे जयव्वं संसारनिवासिएहिं जीवेहिं । पुण्णं विणा न जीवो इह परलोए सुही होइ ॥ इति पुण्ये मदनसुन्दर कथा ।। प्रत्थाग्रम् २०० ॥ १८४ ॥ ॥ ॥ १८५ ॥ १८६ ॥ १८७ ॥ द्वितीयः परिच्छेदः मदन. पुन्ये सुन्दर कथा । ॥२८४॥
SR No.600270
Book TitleChandraprabhswamicharitam
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1986
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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