________________
चन्द्रप्रमस्वामि
द्वितीय परिच्छेदः
चरित्रम्
॥२२॥
पुण्ये मदन. सुन्दरकथा।
मुणिवायाइ भावत्थं, अजाणंती पुणो पुणो। पयाइं ताई बुद्धीए, परावत्तेइ सा मणे ॥ १४६ ।। न य अप्पंति भावत्थं, पयाणि ताणि सा पुणो । मयणसुदरं भूवं, पुच्छेइ सो वि मंतिणो ॥ १४७ ॥ पडिपुच्छेइ जाणंति, न ते वि हु वियारिउं । तओ राया समं तेहिं, सोहग्गसुदरीजुओ ॥१४८।। गओ तत्थेव जत्थत्थि, काउसग्गेण सो मुणी । तं नमंसेइ भत्तीए, दाऊण तिपयाहिणं ॥ १४६ ॥ काउसग्गं स पारित्ता, धम्मलाभ भणेइ य । ताण अणुग्गहट्ठाए, करेइ धम्मदेसणं ॥ १५०।। जीवाण दुट्टकम्मम्मि, घुम्मियाणं इओ तओ ताण । बहुपोग्गलपरियट्टावविवट्टीण अणवरयं ॥ ११ ॥ घणजोणि-लक्खकच्छव-गलत्थणातिक्ख-दुक्खदुहियाण । किण्हप्पमुह-कुलेसाअ-वालसेवालकलियाण ॥ १५२ ॥ कोहमहावडवानल-तत्ताणं रायपंकखुत्ताणं । मिच्छत्तमच्छभीयाण, कलिलसलिलंमि पुड्डाण ॥ १५३ ।। संसारमि समुद्दे अणोरपारंमि दुल्लहं एयं । मगुयत्तजाणवत्तं, विसालकुलजाइदलकलियं ।। १५४ ॥ तं पुण पत्तं पि हु कहकह पि रहियं सुकन्नधारेण । तत्थेव निमज्जंतं, पुणो वि को धारिउं तरइ १ ॥ १५५ ॥ ते य पृण कन्नधारा दुविहा चिट्ठति भवसमुइंमि । एगे कुतित्थपंथाण पत्थिया मग्गमूढा य ॥ १५६ ।। । अन्ने उण सयलवाय-रक्खणखमा भवसमुइंमि । दीवंतरेसु संबल-संपाडणपयड़माहप्पा ।।१५७ ॥ ता जइ सम्मं अपरिक्खिऊण पुच्चुत्तकन्नधाराण । वयणेणं परिपिल्लइ जीवो मणुयत्तबोहित्थं ॥ १५८ ।। ता माणमीणखलियं, मच्छरमयराणणंमि पडिफलियं । मायावित्तलयावणगहणे गाढं निगूढं च ॥ १५६ ॥
॥२८॥