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________________ चन्द्रप्रमस्वामि चरित्रम् द्वितीयः परिच्छेदः ॥२५३॥ स्वामिवि. हारः। तियचउक्कचच्चरपुरम्भंतरबाहिरे । जो य जं मग्गए तस्स, दिज्जए तोसपुव्वयं ॥ २०५॥ वासवाइट्ठजक्खेसपेरिया जिंभया सुरा । सामिणो पूरयंतिऽत्थ, सयलं कंचणाइयं ॥ २०६॥ कोडिमेगं हिरण्णस्स, लक्खा अट्ठव सामिओ। देइ दिणे दिणे सूरोदयाओ जाव भोयणं ॥ २०७॥ वच्छरेण सुवण्णस्स, तिनि कोडिसया तहा । कोडिअट्ठासियं चेय, लक्खासियं च देह सो ॥ २०८ ॥ जायसंसारवेरग्गा, दिक्खाए सामिणो जणा। सेसमित्तं पगिण्हंति, इच्छादाणे विनाग्गलं ॥ २०६ ।। संवच्छरते चलियासणेहिं वासवेहिं से । आगम्म विहिओ दिक्खाभिसेओ सामिणो सयं ॥ २१० ॥ दिव्वालंकारवत्थाणि, सामी चंदप्पहो तओ। पहिरेइ ठिई एसा, दिक्खानिक्खमणे धुवा ॥ २११ ॥ अणुत्तरविमाणाणं, विमाणमिव किंचण । तओ मणोरमं नाम, सिवियं नेइ वासवो ॥ २१२ ॥ दत्तहत्थो महिंदेण, आरूहेइ तयं पहू । माविलोयग्गगेहस्स, सोवाणं पढमं विव ।। २१३॥ मणुस्सेहिं पुरोभागे पच्छाभागे सुरेहिं य । उद्धरिया य सा मुत्तो, पुण्णभारु ब्व अप्पणो ॥ २१४॥ पिक्खियं आगएहिं च, मणुस्सेहि महीयलं । पच्छाईयं तओ देववग्गेहिं गयणंगणं ॥ २१५ ॥ थूयमाणो नरिंदेहि, गीयमाणो सुरेहिं य । सोहम्मेसाणसक्केहि, ढालिज्जमाणचामरो ॥ २१६ ॥ पुरओ नच्चमाणाहिं, अच्छराहिं विराईओ। दत्तासीसो मणुस्सीहिं, वत्थंचलकराहिं य ॥ २१७ ॥ वरमंगलतूरेहि, ताडिज्जंतेहिं अम्गओ। कहिज्जंतनिक्खमणो, तिलोगस्सावि सामिओ॥२१८॥ | ॥२५३॥
SR No.600270
Book TitleChandraprabhswamicharitam
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1986
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size7 MB
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