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________________ वतीनिद र्शनम् उपदेशपद दिटुं तं पुण ण साहिउं सका। सयमेव तं पलोयउ णीलुप्पललोयणो देवो ॥२०॥ इय भणिऊण पयत्तेण गोवियं शङ्खकला कड्डिऊण नरवइणो । चित्तफलयं पणामइ राया पासइ करे धरिउं ॥२१॥ दिट्ठा तत्थोवहसियतियसवहूमणचमक्कसंजणणी। एगा कन्ना लायण्णसलिलकलसोवमाणथणी ॥२२॥ विहिओ गेण पणामो णूणं रंभा तिलोत्तमा वावि । एसा देवी इय माणसम्मि परिचिंतियं तेण ।।२३।। अव्वो! सरलसहावस्स तुज्झ एसा कहं कुडिलरूवा। जाया वयणपउत्ती ॥६७२।। सहासवयणेण इय भणिओ ॥२४॥ निज्झाइया अइचिरं भणियं अव्वो! अउव्वगो कोवि । विन्नाणपगरिसो तस्स जेण लिहिया इमा एवं ॥२५।। का पुण एसा देवित्ति, पुच्छिए राइणा भणइ दत्तो । दिट्ठमणुण्णं लिहमाणगस्स को पगरिसो INT एत्थ? ॥२६॥ एगस्सच्चिय विण्णाणपगरिसो भण्णए पयावइणो। जेण पडिच्छंदस्सवि विरहे एसा विणिम्मविया ॥२७॥ किं एत्थ अपडिपुण्णं भणियं रण्णा जमिदुबिंबनिभं । वयणं कमलदलोवममच्छिजुयं, किंपि रमणिजो ॥२८।। अंगाणं विनासो, लायन्नं जलहिसलिलओ अहिगं । दिट्ठीभंगो रंगस्स सरिसओऽणंगणदृस्स ॥२९॥ कण्णंतपत्ततिक्खंतलोयणा किंच हसिरभणिरेसा । चित्तट्टियावि देवी हरेइ चित्तं फुडं मज्झ ॥३०॥ दत्तणुतं देवेण माणुसीवि र य इमा कया देवी । अहवा मणुस्सिओ चिय देवस्स हवंति देवीओ ॥३१।। एवंविहाओ कि माणुसीओ भी दत्त ! ॥६७२॥ K कत्थइ भवंति । पहसियवयणेण अणेण भासियं सुणउ ता देवो ॥३२।। सा अन्नच्चिय लीला भन्ना सा अंगचंगिमा कावि । जा तीए माणुसीए लिहणं पुण सरणकब्जेण ॥३३।। भणियं सविम्हएणं रन्ना ता भद्द ! कहसु का एसा। पडिभणइ तओ दत्तो एसा मम देव ! भइणित्ति ॥३४॥ जइ तुह भइणी ता दत्त ! सा ण दिट्ठत्ति भणसि किं
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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