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________________ उपदेशपद महाग्रंथ ।। ६५४ ।। -विओए । तं सुयणु ! संगमासादिव्वोसहिसंपओगेण ॥४८॥ मइलिजंतु कुलाई होउ परत्थवि दुरंतदुखाई । परिनिव्ववेहि सुंदरि ! तवियं विरहग्गिणा अंगं ||४९ ।। णाऊण णिच्छां से भणियं गुणसुंदरीइ जइ एवं । जं सुंदर ! तुझ हियं मएवि तं चैव कायव्वं ॥ ५०॥ जइ मज्झ संपओगा होइ सुहं सुहय ! उत्तमं तुज्झ । पल्लीवि सग्गतुल्ला ता पडिहा सइ फुडं मज्झ ॥ ५१ ॥ किंतु मए पारद्धो साहेउं दुल्लहो महामंतो । पडिवन्नं च तयत्थं मासे बंभव्वयं चउरो ॥५२॥ समइच्छियं तयद्ध मासदुगं सेसयं पुणो अत्थि । सहियं च तुमे बहुयं ता विसहसु थेवमेयंपि ॥ ५६ ॥ तत्थ पुण एस कप्पो पुरिसा सव्वोवि भाइपिइकप्पो । दट्ठव्वो अवियष्पं भुञ्जो भोगंगमवियप्पं ॥ ५४ ॥ भणियं च तेण सुंदरि ! सिज्झइ किं नाम तेण मंतेण ? तीए भणियं विहवो पुत्तुप्पत्ती अवेहव्वं ॥ ५५ ॥ एतहियं एवं ममंति तुट्टेण मन्नियं तेण । इयरीवि ठिया तहियं दुहावि मोक्खं अहिलसंती ॥५६॥ तओ । सव्वायरेण सव्वं गिहकिचं कुणइ पश्ञ्चयनिमित्तं । सयणासण अट्ठाण माइणा दंसइ सिहं ॥५७॥ णाणावंजणपक्कन्नसुंदरं कुणइ सुंदरं पायं । घणगोरसाइपउरं परिवेसइ विष्प इयं ॥ ५८ ॥ अयि ।। जोयइ तं सा वरभोयणेहि नय लोयणेहिं निद्ध हिं । सायइ सययं चिय माणसेण सच्छेण ण जले ।। ५९ ।। दंसिय कारिमनेहं तह तीए पत्तियाविओ एसो । जह मन्नइ एयाए वसामि हियाए अहं चेव ||६०|| परिसेसिओ य अप्पा आयंबिल ओमभोयणाईहिं । हाणुव्वट्टणपमुहं चत्तं तह देहपरिकम्मं ॥। ६१ ।। अण्णामम्मि सहसा रयणीए पच्छिमम्मि जामम्मि । अकंदिउं पवत्ता सा नियमे पुन्नपामि ॥ ६२ ॥ भणिया दिएण सुंदरि ! किं ते बाहर सरीरमज्झम्मि ? तीएवि सदुक्खं चिय भणियं अफुडक्खरं सूलं ।। ६३|| तं दट्ठूण विसन्नो वेयरुई कुणइ उव श्रीगुणसुदरीचरि तम् ।। ६५४।।
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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