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________________ उपदेशपद धरिओ पवरावासे कयप्पसाओ धुयविसाओ ॥६८॥ कालोचियववसाया वर्ल्डति धणस्सऽणाउलमणस्स । वच्चंति तत्थ दियहा Xऋद्धिसुन्दमहाग्रंथ सुहेण धम्मस्स धन्नस्स ॥६९॥ सावि पुण लोयणो कंठपत्तपाणो पुराणकट्टेण । कट्टेण णट्ठचित्तो लग्गो तीरे समुदस्स रीचरितम् ॥७०॥ कहकहवि लद्धसन्नो ठिओ तयासन्नपल्लिगामम्मि । तत्थ य मच्छाहारे गिद्धो गिद्धोव्व मोहंधो ॥७१।। वलियं ॥६४८॥ च से सरीरं रसंसदोसेण थेवदियहेहिं । इय दुटुकुट्ठनिद्दानिट्ठियचेट्टो जियइ कटुं ॥७२॥ अविय । धम्मविघाएण णरो इच्छंतो माणिउं पियसुहाई। गयबुद्धिलोयणो लोगणोव्व दुहभायणं होइ ॥७३।। संपत्तो य भमंतो कयाइ थाणेसरं दुहकिलंता । उदयत्थनिग्गयाए दिट्ठो धम्मस्स जायाए ॥७४।। संवेगघणघिणारसवसेण उप्फालिओ दइयस्स । कारुनसारयाए तेणावि गिह समाणीओ ॥७५।। भणिओ या पहसंगमसालस्सव बहुजणसुहयारिचारुचरियस्य । हा कहमिमा अवत्था वड्डइ अइदारुणा भवओ? ॥७६। अहवा । गरुयाणं चिय भुवणम्मि आवया न उण हंति लहुयाण । | गहकल्लोलगलस्था ससिसूराणं ण ताराणं ॥७७।। ता होसु धीरचित्तो मा वह सुमिणे विसायलेसंपि । कारेमि निरुयदेहं मित्तं वित्तेण बहुणावि ॥७८॥ एवमणुसट्टिपुव्वं पडियरिओ सम्ममोसहाईहिं । जाओ य निरुयकाओ सुमित्तसामग्गिसु IN कएहिं ।।७९।। सोजण्णमणण्णसमं तेसिं दण लोयणो धणियं । लजामउलियणयणो झायइ सययं निराणंदो ।।८।। ॥६४८॥ भई सञ्जणचंदणतरूण सव्वंगचंगसंगाणं । डझंताणवि जेसिं गंधो भवणं सुहावेइ ।।८१॥ अवयारसयाणिवि पम्हुसंति तणुयंपि णेगमुवयारं । सुण्णहियया सहियया व हंति सुयणा न नजंति ॥८२।। एयारिसाणवि मए ववहरियं निग्घिणं अणजेण । मए पूण पावेवि इमाण माणसं णेहपडिहत्थं ।।८३।। तइयच्चिय जलहिजले निहणमहं पाविओ वरं
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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