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|-ताओं भासंति न जुज्जए इमं अज्जे !। अम्हं काउं गामाइयाण बाहिं जमुस्सग्गा ।।१५१।। अंतो उवस्सयस्सा वइपरिखित्तिस्स पाउयतणूण । समपायतलाणं समुचियम्ह आयावणं काउं । १५२॥ तं वयणमवगणेउं जहिच्छमायावणं तओ |
| काउं । पारद्धा अह कइयाइ देवदत्तेत्ति णामेणं ॥१५३।। वेसा पंचनिसेवगपुरिसोवगया सुभूमिभागस्स । उज्जाणस्स ॥५९५॥
समंता लच्छीविच्छड्डमिक्खेइ ॥१५४॥ तीसे तेसुं पंचसु जणेसु सिरिसेहरं रयइ एगो । एगो चंपइ पाए एगो छत्तं सिरे धरइ ॥१५५॥ एगो चमरुक्खेवं करेइ उच्छंगियं कुणइ एगो। तं साहग्गपगरिसं पत्तं दटुं विचितेइ ॥१५६॥ दुहगाए मज्ज एगोवि सागरो सायरो ण संजाओ। एईए पूण एवं पंच इमे सायरा जाया ।।१५७॥ ता एईए सुलद्धो जम्मो जीयं च सप्फलं जायं । नियसोहग्गमडप्फरवसाउ इच्छाए जा चरई ॥१५८॥ जइ मे तवस्स नियमस्स अस्स फलमस्थि तो अहं होजा। नियसाहग्गोनामियनिस्सेसमहेलियावग्गा ॥१५९।। एवं विहियनियाणा किंची सोहग्गमेत्थमवहंती। लग्गा सरीरवत्थाइयाण पक्खालणविहीए ॥१६०॥ भणिया गणिणीइ न सव्वहेव तुह सुंदरं इमं काउं। एवं चरित्तभंगा तुह चेव तहा पराणं पि ॥१६॥ अन्नं च दारुणफलो एसो जम्मंतरम्मि तुह होही । ता धम्मसीलसुकुलुग्गयाए तुह जुज्जए नेयं ।।१६२॥
X||५९५॥ एवं अणेगवारे पण्णत्ता चायणं असहमाणा। नियउवगरण समेया भिन्नम्मि उवस्सयम्मि ठिया ॥१६३॥ पासत्थाईण पमत्तयाण साहूण जाणि ठाणाणि । ते सेविउं पवत्ता ण उण अहछंदठाणाणि ॥१६४॥ वासाणि बहूणि X तहाविहेण विहिणा विहारमायरिउ । पक्खपमाणमणसणं काउं चरिमम्मि कालम्मि ॥१६५।। उववण्णा ईसाणे