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________________ उपदेशपाल ताव इय विचितेइ । एसोवि गओ दोहग्गदोसओ तणुगयाओ ममं ॥१३५॥ उवलद्धवइयरेणं पिउणा संभासिया पभा- नागश्रीच महाग्रंथ यम्मि। पुत्ति ! न कस्सइदोसो सकम्ममवरज्झए नवरं ॥१३६।। ता जह इय कम्मखओ संपज्जइ तह जएह दाणम्मि । भारतउत्तर भवस्वरूसमणाण माहणाणं दीणाणाहाइयाण तहा ॥१३७॥ सा पिउणाणुण्णाया सूरुदयाओ निरंकुसा संती। जा तस्सत्थमणखणो' पम्ता देइ निरंतरं दाणं ॥१३८।। एवं कालम्मि गए केवइए सुव्वया बहुसुयाओ। अइनिम्मलसीलकरेणुसुदिढआलाण॥५९४॥ खंभाओ ।।१३९।। तत्थ समोसरियाओ गोवालियनामिगाओ अजाओ। समए विहरंतीणं तासि संघाडिगा एगा ॥१४०।। तीए गिहम्मि पविट्ठा सम्म पडिलाभिउं सबहुमाणं । पडिया पाएसु कयंजली य विन्नविउमारद्धा ।।१४१॥ अहममणामा जाया सागरगस्सा पइव्वया संती। तह अन्नस्सवि देज्जा जम्मदमगस्सवि, तओ मे ।।१४२।। काउं पसायमोसहमन्नं वा मंतमाइ तं कुणइ । जस्साणुभावओ हं सुभगा होहामि नियपइणो ।।१४३।। तव्वयणाणंतरमेव ताओ कन्नेपिहित्तु पभणंति । भद्दे ! अयाणुगाओ एयस्स तहा अणुचियाओ ॥१४४।। अम्हाणं कोसल्लं समस्थि सत्थेसु धम्मविसएस् । ता जइ भणसि कहिज्जइ तुझं जिणदेसिओ धम्मो ॥१४५॥ कहिओ सवित्थरो से सम्म संबाहमागया ताहे। जाया सुसाविया तह पिउणोऽणुनाए पध्वइया ॥१४६॥ इरियासमियाईओ समिईओ पंच तिन्नि गुत्तीओ। मणगुत्ति ॥५९४। माइयाओ जणणिव्व पवज्जए तत्तो ॥१४७।। अइगुत्तबंभचेरा खंता दंता तहा समुवसंता । सीलंगाण सहस्से अट्ठारस दुद्धरे धरइ ॥१४८। आसन्नयाओ गोवालियाओ अज्जाओ वंदिउं भणइ । तुब्भेहिं अणुन्नाया इच्छामि सुभूमिभागस्स ॥१४९।। उज्जाणस्स अदूरे च्छटुंछट्टेण निच्चरूवेण । तवकम्मणा परिगया सूराभिमुही पयावेउं ॥१५०॥ तो अज्जाओ रक
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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