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________________ ॥५३९|| ॥७६।। दीणारलक्खमेगं गहियं मुकं च किंचि गहिलतं । गोयमदीवपहण्ण गहिओ निजामगा एगो ।।७७॥ भरियाई पवहणाइं गामागरनगरकयवरस्स तओ । भणइ जणो को गहिलो नरवई एयाण मज्झम्मि ॥७८।। जो एवं देइ धणं एयरस निओयणे कयवरं च । जो गेण्हइ परतीरे ववहारकए कयपणामो ॥७९॥ अवहीरियइयरजणो खेमेण गओ स तत्थ दीवम्मि । अणुचिट्टिओ य सव्वो अत्था जो पट्टए लिहिओ ।।८।। दिट्ठाओ गावीओ बहुगोमयगह णमह पवहणाई। भरिऊण तस्स खिप्पं समागओ निययदेसम्मि ॥८॥ वेलाऊलम्मि ओयारियाणि सव्वाणि तेण पोत्ताणि । दिट्ठो य भूमिनाहो सप्पणयं पुच्छिओ तेण ॥८२॥ किं हो ! दीवंतरसंकमाओ नियपाणसंसयकराओ। भंड्डोल्लमिहाणीयं । तेणुत्तं गोव्वरो देव ।।८३॥ कि एसो सच्चो चिय गहिलो अहवावि कञ्जमासज्ज । ता होउ जो उ सो वा न कञ्जमेयस्स सुकेण ॥८४॥ इय चितिय तब्भंडं कयमस्सुकं इमो पसाओ भे। भणिओ निवेण हसिओ जणेण धी धी गहिलभावो ॥८५॥ जस्स वसाउ पसाओ एयारिसगो अपुव्वओ लद्धों। अगहिल्लगहिल्लेणं तेणवि अवहीरिउ लोयं ॥८६॥ ते छगपिंडगा नियगिहम्मि संचारिया जया सव्वे । तइया अग्गीपज्जालणेण रयणाणि विहियाणि ।।८७।। जो नरवइणो लक्खो दीणाराण गहिओ पुरा आसि । सो दुगुणो भंडारो पवेसिओ तदधिगारेण ।।८८॥ पइदिवसं रयणाणं विकिणणं IA ||५३९॥ तप्पभावओ भोगा। भुवणम्मि तस्स जाओ भोयणवत्थाइवत्थूण ॥८९।। जाओ य पूयणिज्जो सो बंधवमित्ततत्थयजणाण । इच्छियपयत्थसंपाडणेण कयहिययसंतोसो ॥९०॥ जह सो जणगनिरूवियपट्टगलिहियत्थ निचला संतो। जाओ भायणमइरेगभावओ चितियत्थाण ॥९१।। आणाए जिणिदाणं पट्टगसरिसीए निच्छियाए तहा । कोइ जइ होइ कत्थइ सरकरकाप
SR No.600269
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 02
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1991
Total Pages448
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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