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________________ ।।२७।। जम्हा कोसलवइणा दीहेण गवेसणाकए तुज्झ । इह पुरिसा पेसविया कओ य पुरसामिणा जत्तो ॥ २८४ ॥ सव्वत्तो अम्ह गवेसणम्मि इय सुम्मए जणे वाओ । तो णायवइयरेण सागरदत्तेण भूमिहरे ।। २८५ ।। संगाविया दुवेवि पत्ता रयणी दिसाउ तिमिरेण । आपूरियाउ कञ्जलकाइलकुलनीलवणेण ॥ २८६ ॥ भणिओ य सेट्ठिपुत्तो कुमरेण जहा तहा कुसु अहं । जह तो निग्गमणं सिज्झइ लहुमेव एयं च ॥ २८७ ॥ सेाऊण सेट्ठिपुत्तो सागरदत्तो विणिग्गओ नयरा । तस्सहिओ भूभागं तिष्णिवि थेव गया जाव ॥ २८८ ॥ | सागरदत्तं कहकहविं ठविय ते दावि गंतुमारद्धा । ती नियरी बाहि जक्खालयसमीवे ॥ २८९ ।। घणपायवंतरालट्ठियाइ एयाइ तरुण महिलाए । णाणाविहपहरण| भरियरवरासण्णत्ता ||२९०॥ दठ्ठे सायरमब्भुट्ठिऊण भणियं चिराउ किं तुम्भे । एत्यागया तओ तं निसुणेत्ता भणियमे एहिं ।। २९१ ।। भद्दे ! के अम्हे सावि भणइ किल बंभदत्तवरधणुणो । कहमेयमुवगयं ते सुम्मउ ता तीइ पडिभणियं ॥ २९२ ॥ एत्थेव पुरे सेट्ठी धणपवरो नाम भारिया तस्स । धणसंचयाभिहाणा जाया कुच्छीइ तीइ अहं ।। २९३ ।। अट्ठण्हमुवरि पुत्ताण पत्तजोव्वणभराइ नो कोवि । रुच्च वरो तयट्ठे जक्खस्साराहणं विहियं ॥ २९४ ॥ । तेण य महभत्तिपरव्वसेण पञ्चक्खएण होऊणं । भणियं वच्छे ! जह तुह भविस्सई चक्कवट्टि १ई ।। २९५ ।। नामेण बंभदत्तो मए कहं सो वियाणियoat त्ति । भणियमणेण पयट्टे कुक्कुडजुज्झम्मि जो दिट्ठो ।। २९६ ।। बुद्धिल - सायरदत्ताण संतिए माणसम्मि तुह रमिही । सो बंभदत्तनामा । तह कुक्कुडजुज्झकालाओ ।। २९७ ॥ जं किंचि तुज्झ वित्तं वरधणुणा संगयस्स ॥२७॥
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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