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________________ ॥२८७|| त्थेण समप्पइ भणाइ तह जम्मि समयम्मि ॥१२॥ मग्गामि तम्मि खिप्पं समप्पणिजा ममं इमे ताहिं । अंजलिपसारपुध्वं पडिवन्ना णमिरसीसाहिं ॥१३।। सट्टाणगए बंधवणाइजणे तम्मि आइमा वहया। ते उज्झेइ किमेए मम गेहे दुल्लहा हुति.? ||१४|| जइया मग्गणमेयाण होज तइया जओ कुओ ठाणा । गेण्हेत्तुमहं तायस्स अप्पइस्सामि अचिरेण ।।१५॥ बीयाए पुण नित्तुसभावं आणेत्तु भक्खिया विहिया। तइयाए तायसमप्पियत्ति गउरवपरमणाए ।।१६।। उज्जलवसणेणं गोविऊण णिययम्मि भूसणकरण्डे । बूढा तिकालमणुदिवसमेव पडिजग्गए सम्मं ॥१७॥ चरमाए पुण नियजणगगेहओ सद्दिऊण बंधुजणो । भणिओ पइवरिसमिमे जह वुड्डि जंति तह कज्ज ।।१८।। पत्ते वासारत्ते वाविया तेण बंधवजणेण। सुइसलिलपूरियम्मी वप्पम्मि परोहमणुपत्ता ॥१९॥ सव्वेवि उक्खणित्ता पुणरवि आरोविया तओ जाओ। सरयसमयम्मि एगो पसत्थओ पत्थओ तेहिं ॥२०॥ बीयम्मि आढगा वच्छरम्मि खारी तइज्जगे जाया। कुंभा चउत्थे पंचमम्मि कुंभसहसाणि ॥२१॥ पत्ते पंचमवरिसे तहेव भोयणपुरस्सरं तेण । मिलियाण ताण बंधवजणाण सद्दाविया वहुया ॥२२॥ भणियाओ मम समप्पह सालिकणे पंच जे पुरा तुम्ह । नियहत्थेण समप्पियपुव्वा वरिसम्मि पंचमए ।॥२३॥ पढमा सरणविलक्खा जाया कुट्ठारओ गहेऊण । जा ते तस्स समप्पइ नियसावपुरस्सरं भणिया ॥२४॥ किं ते च्चिय उय अन्ने इमे कणा ताय ! णेव ते भणइ। पुट्टा ते कत्थ गया तइय च्चिय उज्झिया बाहिं ॥२५।। बीयावि मग्गिया पुण भणेइ ते भक्खिया इमे अन्ने । तइया रयण करंडगमर ज्झाओ कड्डिउ देइ ॥२६।। जा पुण ताण चउत्थी वहुया सा मग्गिया भणइ ताय! । ते एवमेवमइभूरिभाव ॥२८॥
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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