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________________ ॥२६॥ सवसो जिणरूवं पासिउं लग्गो ॥३०॥ अमयमयसरीरत्तणेण जगबंधवस्स जगगुरुणो। रूवं पलोयमाणस्स तस्स सवि| साणि अच्छीणि ॥३१।। तस्समयं चिय विज्झायभावमायाणि भगवया भणियं । उवसमसु चंडकोसिय ! न चंडभावो खमो एस ॥३२॥ ईहापोहपहाणस तस्स मग्गणवेसणपरस्स । जायं जाईसरणं पयाहिणाओ तओ तिन्नि ॥३३।। देइ परिचयइ * तहा भत्तं संवेगमागओ तिव्वं । जाणइ जिणो जहेसो विहियाणसणो समं पत्तो ॥३४।। उडे बिलम्मि तुंडं छोड़े परिसंठिओ अहं रुट्टो । मा लोगमरणकारी होहं तस्साणुकंपाए ॥३५।। सामीवि ठिओ जं दंसणेण तस्सोवघायमायरइ । न हु कोवि अल्लियंति य गोवालाई दुमंतरिया ॥३६।। पाहाणेहि हणंति य तिलतुसमेत्तंपि जा न सो चल-* इ। कट्टेहिं घट्टिओ ता तहवि न चलिओ जया तेहिं ।।३७।। तव्वइयरो असेसो अच्चब्भुयकारओ जणमणस्स । संनिहियगामनराइएसु लोयस्स परिकहिओ ॥३८॥ परिहरियभओ लोगो बद्धपवाहो जिणं नमेऊणं । चंदणपुप्फक्खय धूव-* माइणा तमहिमञ्चई ।।३९।। तम्मग्गगामिणीओ पयविक्कयकारिणीओ महिलाओ। तं मक्खंति फुसंति य सो वि य तपंचलाहिं ॥४०॥ कीडीहिं पीडिओवि हु सकम्मपरिणइफलं विभावेंतो। जा दिवसाई पनरस ठिओ तओ कालमणुपत्तो ॥४१बटुमसुरलोए असमरिद्धिसंभारभूसिओ देवो । संजाओ वियडतिरीडकिरणकब्बुरियगयणयलो ॥४२॥ तस्सेसा परिणामियबुद्धी जं सेा तहा कयाणसणो अहिसेोढकीडपीडावियडो पत्तो वरं ठाणं ॥४३।। इति ॥ अथ गाथाक्षरार्थः;-सप्प' इति द्वारपरामर्शः । तत्र 'चंडकोसिय' त्ति चण्डकौशिकनामा सर्पः, तस्य XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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