________________
॥२३९।।
XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX
* तिव्वमणणाणसंगओ सुणइ । महिलाण समुल्लावं जाईसरणो तओ जाओ ॥१३८॥ चितेइ न पव्वजं मज्झमणुव्विग्ग
माणसा एसा। घेत्तुं दाही उव्वेयकारणं होमि एईए ।।१३९।। तिब्वपसारियवयणो रोवेलं लग्गओ जह न एसा ।
आसइ भुजई सयई सुहेण गिहकम्ममायरई ।।१४०।। एवं जा छम्मासा अहागया सीहगिरिगुरू तत्थ । नयरुज्जाण| म्मि ठिया विहिए सज्झायजोगम्मि ।।१४१॥ पत्ते भिक्खावसरे धणगिरिसमिया भणंति सीहगिरि । भगवं सन्नायगलोगदसणत्थं गिहे जामो ।।१४२।। गुरुणाणुमण्णिया ते सप्पणिहाणा कुणंति उवओगं । जा ता उत्तमकलयं किंचि निमित्तं समुप्पण्णं ॥१४३।। गुरुराह गया संता सचित्तमियरं व जं लहेजाह । तं सव्वमुवादे जह जमज सउणो महं जाओ
॥१४४।। तो दावी सुनंदाए गिहे गया सावि निग्गया तत्तो । उभयकरधरियपुत्ता कुलमहिलाओ तहा मिलिया | ||१४५।। पणमिय पाए भासइ मए चिरं पालिओ इमो बालो । संपइ पुण पडिगाहसु जओ समत्था न एत्तो हं | ॥१४६।। इय भणियम्मि स पभणइ पच्छायावं करेसि जइ कहवि । तइया किं कायव्वं सा पभणइ इमो जणा सक्खी ।।१४७।। जइ किंचि भणामि अहं इय दढबंधं करेत्तु तीए समं । धणगिरिणा सेा बालो पत्तो बंधम्मि संगहिओ ॥१४८॥ तयणंतरं न रोयइ जाणइ जाओ जहा अहं समणो। नीओ गुरुपयमूले सलक्खणत्तेण सेो गरुओ ॥१४९॥ धणगिरिणो बाहुं नामिऊण जा नेइ भूमिमह सूरी । भरियं भाणं परिभाविऊण हत्थं पसारेइ ॥१५०।। सेो वि य भूमिपत्तो जा जाओ ताव सूरिणा भणियं । अव्वा किं वइरमिमं जं भारियभावमुव्वहई | ।१५१॥ जा पेच्छइ सुरकुमरोवमाणमेयं सविम्हओ भणइ । सारक्खह सुयमेयं जं पवयणपालगा हाही ॥१५२।।
।।२३९।।