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________________ ॥११॥ एस तुज्झ किल पुत्तो । सा भणइ बालभावो इत्थवरज्झइ न सब्भावो ॥४२।। मुद्ध! न अन्नहेयं आरूढो जोव्वणं इमो कुमरो । मुझं तुज्झ य मरणाय होहिही भणइ इय दीहो ॥४३।। तो मारिजउ एसो केणावि अलक्खिएणुवाएण । भइ साहीणे भद्दे अन्ने होहिंति तुह पुत्ता ॥४४।। रइरागपरवसाए इहपरभवकजवंझवित्ताए । पडिवन्नं | चुलणीए धिरत्थु इत्थीण चरियाई ॥४५॥ जं सव्वलक्खणधरे लायण्णुकरिसनिजियकुसुमसरे । सव्वाविणयविरहिए नियपुत्ते ववसिया एवं ॥४६।। वरिया य तेहिं तत्तों तस्स कए भूमिपहसुया एगा। पउणीकयं च सव्वं विवाहपाउग्गमुवगरणं ॥४७।। थंभसन्निविट्ठ अइगूढपवेसनिग्गमदुवारं । कारावियं जउहरं वासनिमित्तं कुमारस्स ॥४८।। णाओ एस वइयरो घणुणा तो रजकज्जकुसलेण । भणिओ य दीहराया एस सुओ वरधणू मज्झ ।।४९॥ संपत्तजोव्वणभरो निव्वाहसहो य रज्जकजाण । वणगमणावसरो मे अणुमण्णसु जामि जं तत्थ ।।५०॥ तो कइयवेण भणिओ दीहेण अमच्च ! एयनयरठिओ । दाणाइणा पहाणं करेसु परलोयणढाणं ॥५१॥ पडिवजिऊण एवं पुरपरिसरबाहिगंगतीरम्मि । काराविया विसाला एगा धणुणा पवा पवरा ।। ५२॥ परिवायगाण तह भिक्खुगाण णाणाविहाण पहियाण । भद्दगइंदोव्व तहि दाणं दाउं पयट्टो सो ॥५३।। सम्माणदाण गहिएहि अप्पणो निव्विसेसपुरिसेहि । चउगाउयं सुरंग करावइ जाव ज उगेहं ।।५४।। एवं ठियम्मि नरवइकण्णा सा निययपरियरसमेया। वीवाहत्थं पत्ता कंपिल्ले ऊसियपडाए ॥५५।। वित्तं पाणिग्गहणं वासनिमित्तं तओ य रयणीए। वरधणुवहूसमेओ पवेसिओ जउहरं कुमरो ॥५६।। जामदुगम्मि अइगए निसाइ पज्जालियं च तं भवणं । जाओ य कलयलरवा अइभीमो सवओ तस्स ॥५७।। पक्खुहियजलनि
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
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