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विरती पडिवज्जइ वज्जियवियारा ॥५४।। उस मियसीहसप्पा चउमासोवासिया गुरुसयासे । कयकूवफलावासो तइओवि मुणी समायाओ ॥५५।। अब्भुट्ठिया मणागं दुक्करकारीण सागयं तुब्भं । आभासिया कया जा गुरुणा ता थूलभद्दोवि ।।५६।। गणियागिहम्मि पइवासरम्मि गिव्हिय मणुन्नमाहारं । भुंजतो रम्मतणू समाहिगुणओ य संपन्नो ॥५७॥ अइदुक्कर दुक्करकारयस्स अब्भुट्ठिऊण सप्पणयं । भणियं गुरुणा तव सागयं ति ते मच्छरं पत्ता ।।५८॥ तिन्निवि भणंति खमगा! | पेच्छइ सूरी कहं इमं भणइ । एस अमञ्चस्स सुओ अतवोवि पसंसिओ एवं ॥५९॥ मणमज्झठवियरोसेण पाउसम्मी समागए दुइए। सीहगुहाखमगेणं भणिओ सूरी अहं जामि ॥६०॥ उवकोसाइ गिहम्मी कोसावेसाइ लहुगभइणीए । तं बोहेमि किमणो कोवि इहं थूलभद्दाओ ॥६१।। उवउत्तेणं गुरुणा णायं पारं न पाविही एसो। पडिसिद्धो तहवि | गओ तो मग्गियलद्धवसहीओ ॥६२॥ लग्गो वासारत्तं का सा भद्दिगा सुणइ धम्मं । अइफारसरीरा भूसिया य अविभूसिया चेव ॥६३।। सो मयणगालगा इव जलणसमीवे तओ पलोयंतो । जाओ अईवदढभाववज्जिओ फुरियकामसरो ॥६४॥ वज्जियलज्जो अज्झोववण्णओ मग्गिउं तओ लग्गा । निउणमईए तए भणिओ किं देसि तं अम्हं ? ॥६५।। सो भणइ नत्थि मे किंचि जेण णिग्गंथओ अहं भद्दे !। तहवि य भणस किमिच्छसि लक्खं, निसुयं च ॥१७३।। तेणेवं ॥६६।। नेवालजणवए जह रायाऽपुव्वस्स साहुणो देइ । कंबलरयणं सयसहस्समोल्लमेसो तहिं जाइ ॥६७।। लद्धं
तं तत्थ महापमाणवंसस्स नूमियं मझं । ठइयं छिद्दे जह तं न कोवि किंचिवि वियाणाइ ॥६८॥ नगिणप्पाओ || BI जा एइ एक्कओ विस्समं अकुणमाणो । ता कत्थवि य पएसे सउणो वासइ जहा लक्खा ॥६९॥ एसो इहेति वृत्तं |