SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीउपदे- शपदे श्रीअभयकुमारनि० 1११४|| रजपरिचायं काही दाणप्पयाणाओ ॥११॥ ता संपइ नो गोरवजोग्गो एसो जओ इमे कुमरा । उप्पन्नमच्छरा मारि- हिंति एयंति मुणिऊण ।।१२।। दिट्ठो अवधूयगईए सेणिओ तो न जुत्तमिह मज । इय चितिय परिचलिओ कुमरो देसं- तराभिमुहा ॥१३।। पत्तो विन्नाइ नईइ तीरभागप्पइट्ठियत्तेण विनायडाभिहाणे पुरम्मि परपउरजणकलिए ॥१४॥ परिमियनियभिच्चेहि-पसंगओ संगओ पविट्ठो य । अभितरम्मि तत्तो पत्तो एगस्स सेट्ठिस्स ॥१५॥ खीणविहवस्स हट्टम्मि तत्थ लद्धासणो समुवइट्ठो। दिट्ठो आसि निसाए जहाऽऽगओ मम गिहे जलही ॥१६॥ सुविणो मणोहरो इय णूणं तप्फलमिमं ति चित्तेण । संतुट्ठो सो सेट्ठो तम्मि दिणे तस्स पुन्नेहिं ।।१७॥ पट्टणसंखोहकरो महो पयट्टो तओ जणो बहुओ । कुंकुमचंदणधूयाइकिणणकब्जेण हट्टम्मि ।।१८।। ओइन्नो अइबहुयं विढत्तमसढाए तेण नीईए। पच्छा भोयणकाले उदिउकामेण सो पुट्टो ।।१९।। कस्स इहं पाहुणगा तुम्हे, तेणावि तुम्ह भणियमिणं । नीओ घरम्मि उचिया विहिया सव्वत्थपडिवत्ती ।।२०।। तो तस्स वयणकोसलसुभगत्तणविणयसुयणभावेहिं । अक्खित्तमणो सिट्टी धूयं नंदं निय देइ ॥२१।। परिणाविओ पबंधण भूरिणा जणियजणपमोएणं । तत्कालोचियसंपन्नसवकजो समं तीए ॥२२।। अञ्चंतणुरत्ताए सुविणम्मिवि विप्पियं मुणंतीए । एतो चिय विणयपरायणाए मिउमरवणाए ॥२३।। लग्गो भोगे भोत्तुं मोत्तुं सव्वाओ सेसचिताओ । अइजामाउयवच्छलससुरजणाणीयसम्माणो ॥२४॥ सुहपासुत्ता पेच्छइ अहन्नया सुविणयंम्मि सा नंदा हरहासकासधवलं चउदसणं ऊसियकरं च ।।२५।। नियवयणे पविसंतं मत्तंगयकलहमेगमह बुद्धा तक्खणमेव निवेइय पइणो तेणावि सा भणिया ।।२६।। उचियसमएण होही ते पुत्तो पुन्नलक्खणो दइए! । सुरवासा XXXXXXXXXXXXXX XXXXXXXXXXXX ।।११४.।
SR No.600268
Book TitleUpdeshpad Mahagranth Satik Part 01
Original Sutra AuthorJinendrasuri
Author
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1989
Total Pages438
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy