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श्रीजैन कथासंग्रह
श्री अथ सुसढचरित्रम्।
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चेव ॥२॥ अह तेण सीलसन्नाह-सूरिणा रुप्पिविलिसिअंदटुं। आजम्माओ सल्लं, चिअवंदणपुव्वमुद्धरित्रं ॥३॥ पडिलेहिउँ पमजिय, थंडिल्लं तत्थ साहुगणसहिओ। संपलिअंकनिसन्नो, एवं आराहणं कुणइ॥४॥ तिहुअणपुजाण नमो, जिणाण तह सव्वकजसिद्धाणं। सिद्धाणं सूरीण य, पंचविहायारनिरयाणं॥५॥ तहय उवज्झायाणं, वरसीसगणाण सुत्तदाईणं। समभावभाविआणं, नमो २ सव्वसाहूणं॥६॥ तो चउविहमाहारं, पच्चक्खड़ चउकसायमलमुक्को । कयचउसरणो सव्वे, जीवे खामेड़ तह खमइ ॥७॥ मासं पाओवगओ, सहिओ साहूहिं सीलसन्नाहो। संबुद्धो स महअप्पा भवरहिओ सिवपयं पत्तो॥८॥ अह भणइ गोअमो पहु, आहीरी सा तहिं च सुजसिरी। किं तइआ पव्वइआ, किंवा नो तो पहू भणइ॥९॥सा सुजसिरी कन्ना, वच्चंती सह जणेण तेण तया। तीए मयहरिआए, अवहरिआ अंतरा चेव ॥१०॥भणिआ य मज्झ भुत्तूण गोरसं कत्थ वञ्चसि इयाणिं । जं मे तंदुलमुल्लं भणियं विप्पीइ तमदाउं॥११॥ जइ पुण संपइ एहिसि, भद्दे तं गोउलं मए
सद्धिं। होहिसि मह सुविणीआ, तो तं पुत्तिव्व पालिस्सं॥१२॥ पत्ता तो तीइ समं, सुजसिरी गोउलम्मि तग्गेहे। ॐड सुरसुंदरिसमरूवा, कमेण सा जुव्वणं पत्ता॥१३॥ अह नढे दुब्भिक्खे, सुत्थीभूएसु सव्वदेसेसु । पंथा वहंति
सव्वे, लहंति भिक्खायरा भिक्खं ॥१४॥ अह चिंतइ सुजसिवो, परदेसे किं धणेण बहुणावि । पिच्छंति जं निमित्ता, जं च अमित्ता न पिच्छंति ॥ १५ ॥ इय चिंति पयट्टो, सुजसिवो सम्मुहं सदेसस्स । वच्चंतो अ
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