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________________ श्रीनीजैन कासनमहः &acococ ।श्री अथ सुसढचरित्रम्। Wapli ठाणंमि तहिं समोसढं एसा। पिच्छिस्सइ पउमजिणं, असेसदुक्खक्खयसमत्थं ॥ ७७ ॥ जिणनाहविहारेणं, रोगायंका खणेण जंतूणं । नस्संति तओ तीईवि, रोगायंको पणट्ठो सो॥७८॥ वंदित्तु जिणं तत्तो, पुव्वकयं छ दुक्कयं च पुच्छित्ता । भवभमणपरिस्संता, पवजं गिन्हिही एसा ॥ ७९ ॥ आलोइय निस्सल्ला, 8 तिव्वतवचरणखवियकम्ममला। लक्खणदेवीजीवो, सा खुजा गच्छिही मुक्खं ॥८०॥ अप्पं पि भावसल्लं, जे नालोयंति गारवाईहिं । ते वच्छे ! लक्खणज व-तिक्खदुक्खाई पावंति ॥ ८१॥ तो भणइ सीलसन्नाहमुणिवई पुत्ति तं इमं सुच्चा । सम्मं आलोइत्ता, अप्पं ठावेहि सुगईए ॥ ८२ ॥ तिव्वतवचरणजुआ, जम्हा तं पढियबहुअसुत्तत्था । ता कीस दुग्गई जासि, निन्हवित्ता इमं सल्लं ॥ ८३ ॥ रत्ने रुन्नं जह होइ, निप्फलं अंधयारनर्ट व । तह तुज्झवि तवचरणं, मा होउ निरत्थयं सव्वं ॥८४ ॥ धमियं चिरं सुवनं, हारइ को नाम इक्कफुक्काए । कायस्स कए चिंता-मणिं च को चयइ करपत्तं ॥ ८५ ॥ चिंतामणिअब्भहियं, तवं चरित्तं च दुल्लहं लहिउं। किं हारसि तं मूढे । थोवस्स कए बहुं चुक्का .८६ ॥ इय गुरुभणिअं सोउं, सा जंपइ रुप्पिसाहुणी एवं । भयवं तुम्हवि पुरओ, किं अलीयं जंपए को वि ॥ ८७ ॥ तरिऊण नीरनाहं, सो मूढो गोपयंमि बुड्डेइ। जो न कहइ निअसलं, एवं तुब्भेहिं भन्नंते ॥८८ ॥ अह निवडनियडिवसओ, भणइ इमा इत्तिअं अहं जाणे। तइआन सरागाए, दिट्ठीए निरिक्खिया तुझे॥८९॥ किं पुण गुणनिप्पन्नं, नाममेयस्स सीलसन्नाहो। ॥३०॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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