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श्रीजैन
कथासंग्रहः
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काइ ती वि, हाहा हिययं पयहं मे ॥ २२ ॥ ते धन्ना मुणिणो जे, नो खोहिज्जंति दिव्वभोगेहिं । पावा अहं खु इक्का खुहिआ जं इत्तिएणावि ॥ २३ ॥ दिज्जइ रेहा पढमा, इत्तियकालंमि, सईणमज्झमि । सा अज मज्झ फुंसिआ, इमाइ पावाइ चिंताए ॥ २४ ॥ अन्नं च सयललोए, अखलियसीलत्ति पत्तकित्ति अहं । समुद्धरणं पासे, कस्स करिस्सं अहं तत्तो ? ॥ २५ ॥ सम्मं च कहिजंते, नियमा लोअंमि पायडं होइ । ता दंसिस्सामि मुहं, किहयं माताइमाईणं ॥ २६ ॥ अकहिज्जंतंमि पुणो, ससल्लहिअयाइ नत्थि मह सुद्धी । ता वग्घदुत्तडीसंकडंआ कि हो ? ॥ २७ ॥ अहवा चिंतियमित्तं, आलोअंतीइ मज्झ को दोसो । इय चिंतिय गुरुपासं, गंतुं सा उट्ठिया जाव ॥ २८ ॥ ता कंटओ पयंमी, खुत्तो तीएवि चिंतियं तत्तो । सुंदरमेयं पि न जं, कुओ इमो कंटओ इत्थ ॥ २९ ॥ तो किं न पडइ विज्जू, मह उवरिं अह व पंसु वुट्ठित्ति । हिययं व फुट्टड़ न किं ?, हयाइ इयपावकम्मेणं ।। ३० ।। अह माणमहागिरिचंपिआइ परिचिंतियं इमं तीए । अहयं किल विक्खाया, सव्वत्थवि सीलगुणकलिआ ॥ ३१ ॥ निम्मलकुलसंभूया, तो कहमेयं कहेमि अइआरं ? । अकहिज्जंते सल्लं, लहुयत्तं पुण कहिज्जं ॥ ३२ ॥ तो परववएसेणं, पच्छित्तं पुच्छिऊण गुरुपासे । सयमेव करेमि तवं, सोच्चिय जं कम्मखयहेऊ ॥ ३३ ॥ किं इत्थ परसमक्खं, नियदोसपयासणेण मे कज्जं । इय चित्ते चिंतेडं, लग्गा घोरं तवं काउं ।। ३४ ।। छट्ठट्ठमदसमदुवालसेहिं, निवीइएहिं दसवरिसे। तह खवणएहिं दुन्निउ, दो चेवय भुज्जिएहिं तु
। श्री अथ
सुसढचरित्रम् ।
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