SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीजैन कथासंग्रहः श्री अथ सुसहचरित्रम् । ॥२४॥ दवसम! भवभयमहीरुहसमीर ! भावारिवारबलभंगसज! जय देव! चिरकालं ॥९॥नयभंगिभंगसंगमसमयगंगाहिमालय ! जयेह । अतुलबलविमलकेवल ! रोगजरामरणहरण ! जय ।। ९८ ॥ कलिमलसंचयगुरुनीर-पूर हरहासहंससमचित्त !। सजलजलवाहसमरव ! जय वरमंगलकुलनिवास !॥ ९९ ॥ जय बंधुरतरसंवर-विहंगसंवासभूरुहनिरीह ! । जय निविडजडिमसंहार करणरागाहिगरुडसम ! ॥३०॥ उद्दामकामकुंजर-केसरिसम! सिद्धबुद्धनिस्संग!। रविभासुरभामंडल-सिद्धिपुरीसरलसरणिसम!॥१॥ एवं हि दंभधरणीवरसीर ! धीर!, संसारसागरतरीसम देव देव!। तं संथुओसि समसक्कयपागएहिं, सद्देह देहि जयभूसण ! मज्झ मुक्खं ॥२॥ इय थोउं उवविट्ठो, सपरियणो नरवई उचियदेसे । अह नाउं निवचित्तं, भवरूवं भणइ भुवणगुरू ॥ ३ ॥ पवणपहिल्लिर पउमिणि-दलग्गसंसग्गनीरबिंदुव्व । पियपरियणसंजोगा, 8 बहुदुक्खकरा य जियलोए॥४॥ सक्कस्सवि सुरनारी-निम्मिअपिक्खणखणं निअंतस्स । विजुनिवाउव्व भवे अतक्वियं अच्छामरणं ॥५॥ तं च विणा सुरलोओ, सोगानलउग्गतावसंतत्तो। तमसंमि नच्चणं पिव, सव्वं सुन्नं स मन्नेइ॥६॥ चक्कहरस्स विन सुहं, समग्गभोगंगसंगयस्सावि। पियपुत्तपमुहदारुण-विओगसंतत्तचित्तस्स ॥७॥ इयराणं पि नराणं किं भन्नइ नरवरिंद ! निच्चंपि। निअउयरकंदरा-पूरणे वि जाणं मणो दुहियं ॥८॥ ॥२४॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy