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श्रीजैन कथासंग्रहः
श्री अथ सुसहचरित्रम् ।
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दवसम! भवभयमहीरुहसमीर ! भावारिवारबलभंगसज! जय देव! चिरकालं ॥९॥नयभंगिभंगसंगमसमयगंगाहिमालय ! जयेह । अतुलबलविमलकेवल ! रोगजरामरणहरण ! जय ।। ९८ ॥ कलिमलसंचयगुरुनीर-पूर हरहासहंससमचित्त !। सजलजलवाहसमरव ! जय वरमंगलकुलनिवास !॥ ९९ ॥ जय बंधुरतरसंवर-विहंगसंवासभूरुहनिरीह ! । जय निविडजडिमसंहार करणरागाहिगरुडसम ! ॥३०॥
उद्दामकामकुंजर-केसरिसम! सिद्धबुद्धनिस्संग!। रविभासुरभामंडल-सिद्धिपुरीसरलसरणिसम!॥१॥ एवं हि दंभधरणीवरसीर ! धीर!, संसारसागरतरीसम देव देव!। तं संथुओसि समसक्कयपागएहिं, सद्देह देहि जयभूसण ! मज्झ मुक्खं ॥२॥ इय थोउं उवविट्ठो, सपरियणो नरवई उचियदेसे । अह नाउं निवचित्तं, भवरूवं भणइ भुवणगुरू ॥ ३ ॥ पवणपहिल्लिर पउमिणि-दलग्गसंसग्गनीरबिंदुव्व । पियपरियणसंजोगा, 8 बहुदुक्खकरा य जियलोए॥४॥ सक्कस्सवि सुरनारी-निम्मिअपिक्खणखणं निअंतस्स । विजुनिवाउव्व भवे अतक्वियं अच्छामरणं ॥५॥ तं च विणा सुरलोओ, सोगानलउग्गतावसंतत्तो। तमसंमि नच्चणं पिव, सव्वं सुन्नं स मन्नेइ॥६॥ चक्कहरस्स विन सुहं, समग्गभोगंगसंगयस्सावि। पियपुत्तपमुहदारुण-विओगसंतत्तचित्तस्स ॥७॥ इयराणं पि नराणं किं भन्नइ नरवरिंद ! निच्चंपि। निअउयरकंदरा-पूरणे वि जाणं मणो दुहियं ॥८॥
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