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________________ 5 श्री अथ सुसढचरित्रम्। पाविजइ, धम्मेणं चिय सुचिनेणं ॥ ७४ । ता दुल्लहंपि इण्हेिं, दुलहं मणुअत्तणाइसामग्गिं । जइ न करिस्सह चरणं, ता अन्नं अत्थि नहु सरणं ॥ ७५ ॥ लटुंपि इमं बोहिं, जइ नाराहेह णागयासाए। ता कह अन्नंमि भवे, पाविस्सह हारियं बोहिं॥७६ ॥ इच्चाइ जाव जंपड़, जाईसरणे णमाहणी तत्थ । ताव इमो पडिबुद्धो, गोविंदो माहणो भणइ ॥७७ ॥ मोहमहाकलखुत्तो, तुमए उत्तारिओ पिए ! अज। तो पव्वयामि इण्हिं, अह विप्पी जंपए एवं ॥ ७८ ॥ मोहनिसाए भवमंदिरम्मि जलिए पमायजलणम्मि । अन्नाणनिमुद्दिय-जए तए जग्गियं अज॥७९॥संजमवंतो सुत्ता विदव्वओ भावओ अपडिबुद्धा। जग्गंता वि हु सुत्ता, मिच्छद्दिट्ठी अहम्माओ ॥८॥ तो सहिओ विष्पीए, बहुनरनारीजुओ अ गोविंदो । निक्खंतो सुयकेवलि-गुणंधरायरियपयमूले ॥ ८१॥आराहिऊण सम्म, नाणं चरणं च दंसणं सुचिरं । तेणेव भवेण तओ, सव्वाणि ताणि सिद्धाणि ॥ ८२॥ अह भणइ गोअमो पहु !, किं सुकयमिमीइ माहणीइ कयं । जं सुलहबोहि एसा, जाया बहुलोगबोहिकरी ॥४३॥ भणइ पहू एयाए, निस्सल्लालोअणा पुरा जम्मे। दिन्ना तह अणुचरियं, पच्छित्तं जह गुरुविइन्नं ।। ८४॥ चरिउं विसुद्धचरणं, लहिउं सक्कस्स अग्गमहिसित्तं । तत्तो चुआ समाणी इमेरिसा माहणी जाया॥८५॥ पुट्विं किमासि समणी एसा पुच्छेइ गोअमो पुणवि । भयवं जंपड़ एसा आसी गच्छाहिवो पवरो॥ ८६ ॥ भयवं परित्तसंसारिणावि कयराइ तेण मायाए। गच्छाहिवेण पावो इत्थीदेओ निबद्धत्ति ॥ ८७ ॥जो सयलपावठाणं ॥७॥
SR No.600265
Book TitleJain Katha Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorKalyanbodhivijay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year1998
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size16 MB
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