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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
सः समाधि प्राप्त आ० अनुक्रन मे का मृत्युको प्राप्तहुवे || १४ || पूर्ववत् ॥ १५ ॥ त० तव व० वरुण को का० काल को प्राप्त जा० जानकर अ० समीपवर्ती वा० वाणव्यंतर दे० देव दि० दीव्य सु० सुरभि ) गं० गंध का उ० पानी वा० वर्षा ० वर्षाई द० दशके अर्ध व वर्ण वाले कुः कुसुम नि० डाले दि दीव्य गी० गीत गं० गंधर्व नि० शब्द क० किया हो० था त० तब व० वरुण का तं० उस दि० दीव्य (दे० देवऋद्धि दे० देवति दे० देवानुभाग सु० सुनकर पा० देखकर व० बहुत मनुष्य अ० अन्यान्य तिक सण्णापहं मुयइ मुयइत्ता सल्लुद्धरणं करेइ करेइत्ता आणुपुत्रीए कालगए ॥ १५ ॥ तणं वरुणं नागनत्तुयं कालगयं जाणित्ता अहासंणिहिएहिं वाणमंतर देवहिं दिव्वे सुरभिगंधादगवासे वुट्ठे दसद्धयवण्णे कुसुमे निवाइए, दिव्वेयगीयगंधव्वनिनादेकएयावि होत्था, ॥ तरणं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स तं दिव्वं देविडूिं दिव् ऐसा कहा कि मेरे प्रिय बाल मित्र वरुण नागनप्तृक को जो शीलव्रत, गुणत्रत, वेरमण, प्रत्याख्यान पोषघोपवास हैं वे मुझे भी होवो ऐसा करके उसने भी कवच नीकालकर वाण नीकाला फीर अनुक्रम से कालधर्म को प्राप्त हुवा || १५ || फीर समीपवर्ती वाणव्यंतरोंने वरुण नागनप्तृक को कालधर्म प्राप्त हुवा जानकर दीव्य सुगंधित पानी की वर्षा की, पांच वर्णवाले पुष्पों की वर्षा की, वैसे ही दीव्य गीत गंधर्व की ध्वनि की. उस समय में वरुण नाग नप्तृक को दीव्य देवद्धिं, दीव्य देव श्रुति व दीव्य देवानुभाग
400 सातवा शतकका नववा उद्देशा
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