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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
ए० ऐसा आ कहते हैं जा० यावत् प० प्ररूपते हैं ए० ऐसे दे० देवानुप्रिय ब० बहुत म० मनुष्य जा० यावत् उ० उत्पन्न भ० होते हैं ॥ १६ ॥ व० वरुण भं० भगवन् ना० नागनप्तृ का० काल के अवसर में का० काल करके कर कहां ग० गया क० कहां उ० उत्पन्न हुवा गो० गौतम सो० सौधर्म दे {देवलोक में अ० अरुणाभ वि० विमान में दे० देवपने उ० उत्पन्न हुवा त० तहां अ० कितनेक दे० देवकी च० चार प० पल्योपम की ठि० स्थिति त० तहां व० वरुणदेवकी च० चार प० पल्योपम की ठि ( स्थिति से वह मं० भगवन् व० वरुण देव ता० उस दे० देवलोक से आः आयष्य क्षयसे भ० भव ठि० देवजुत्तिं दिव्यं देवाणुभागं सुणित्ताय पासित्ताय बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ जाब परूवेइ एवं खलु देवाणुप्पिया ! बहवे मणुस्सा जाव उववत्तारो भवति । ॥ १६ ॥ वरुणेणं भंते ! नागनत्तुए कालमासे कालं किच्चा कहिंगए कहिं उववण्णे ? गोयमा ! सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उबवण्णे तत्थणं अत्थेगइयाणं देवानं चत्तारि पलिओमाणि ठिई प० ॥ तत्थणं वरुणस्सवि देवस्स चत्तारि लिओ माई ठिई पण्णत्ता ॥ सेणं भंते ! वरुणे देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं, { प्राप्त हुवा सुनकरके बहुत मनुष्य परस्पर ऐसा कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! युद्धमें सन्मुख युद्ध करनेवाले बहुत मनुष्य देव में उत्पन्न होनेवाले होते हैं || १६ || अहो भगवन् ! वरुण नागनप्तृक काल के अवसर में काल करके कहां गया व कहां उत्पन्न हुवा ? अहो गौतम ! सौधर्म देवलोक में अरुणाभ विमान में
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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