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शब्दार्थ स्थल ५० परिग्रह का प० प्रसाख्यान किया जा० जीवन पर्यंत एं. ऐसे इ० अभी अं० मैं त उन भ०
०७ भगवन्त म० महावीर की अं० पास स०सर्व पा०प्राणातिपातका ५० प्रयाख्यान करताहूं जो जीवन पर्यंत
ए. ऐसे ज• जैसे खं स्कंदक जा. यावत् च चरिम ऊ ऊश्वास नी निश्वास से वो० वासराता हूं ति ऐसा करके म० कवचको मु० दूरकरके सशल्योद्धरण क०करके आ आलोचना करके प०अतिक्रमण कर
तस्स नागनत्तयस्स एगे पिय बालवयंसए रहमुसलं संगाम संगामेमाणे एगेणं पुरिसेणं - गाढप्पहारीकएसमाणे अत्थामे जाव अधारणिज्जमितिकटु वरुणं नागनत्तुयं रहमुसलाओ संगामाओ पडिनिक्खममाणं पासइ पासइत्ता, तुरए निगिण्हइ निगिण्हइत्ता जहा वरुणे जाव तुरए विसज्जेइ पद्धसंथारगं दुरूहइ दुरूहइत्ता पुरत्थाभिमुहे जाव अंजलिं कटु एवं वयासी जाइण्णं मम पियवालवयंसस्स वरुणस्स नागनत्तुयम्स सी
लाई वयाइं गुणाई वेरमणाई पच्चक्खाणपोसहोववासाइं ताइण्णं ममंपि भवन्तु । भावार्थ मुशल संग्राम में युद्ध करता हुवा शक्ति रहित यावत् शरीर को धारन करने में अशक्त हुवा ऐसा
जानकर रथ मुशल संग्राम में से पीछे जाते हुवे वरुण नाग नतृक को देखा. उस समय वह भी अश्व की लगाम ग्रहण कर रथ मुशल संग्राम में से पीछा नीकलकर एकान्त स्थान में गया. वहां रथ से नीचे उतरकर घोडे को छोड़ दीये और कपड़े का संथारा वीछाकर पूर्वाभिमुखसे वैठा. और हस्तद्वयं जोडकर
१ अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋपिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी