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शब्दार्थ
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380% पंचमांग विवाह पण्पत्ति ( भगवती) मूत्र
म मेरे ध० धर्माचार्य ध० धर्मोपदेशक को वं. वंदना करताहूं भ० भगवन्त को त० तहां रहे हुवे को इ० यहां रहा हुवा पा० देखो मे• मुझे भ० भगवन्त त० तहां रहे हुवे जा० यावत् वं० वंदनाकर न नमस्कार कर एक ऐसा व• बोला पु. पहिले म० मैंने स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर की अं०१४ पास थू० स्थूल पा० प्राणातिपात का प्र० प्रसाख्यान किया जा० जीवन पर्यंत ए. ऐसे जा यावत थ..
भगवओ महावीरस्स अंतियं थूल पाणाइवाए पच्चक्खाए जावजीवाए एवं जाव थूलए परिग्गहे पच्चक्खाए जावजीवाए, इयाणिपिणं अहं तस्सेव भगवओ महावीरस्स अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावजीवाए एवं जहा खंदओ जाव एयंपिणं चरिमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरामि त्तिक? सण्णाहपर्ट मुयइ मुयइत्ता सल्लुद्धरणं
करेइ करेइत्ता आलोइय पडिक्कंते समाहिपत्ते आणुपुन्वीए कालगए ॥ १४ ॥ तएणं श्रमण भगवंत महावीर स्वामी की पास से यावज्जीव स्थूल प्राणातिपात यावत् स्थूल परिग्रह का प्रत्याख्यान किये हैं. और अभी भी उन महावीर स्वामी की पास यावज्जीवपर्यंत सब माणातिपात का प्रत्या- ool ख्यान करता हूं, यावत् जैसे स्कंदक का आधिकार कहा वैसे चरिम उश्वास नीश्वास तक मेरी काया को त्यजता हूं. ऐसा करके कवच को छोडकर षाण का जो शल्य शरीर में था उसे नकिाला. और अनुक्रम से काल धर्म को प्राप्त हुवा ॥ १४ ॥ उस समय में वरुण नामक नागनतृक का एक बालमित्र रथ है।
2088043 सातवा शतक का नववा उद्देशा -
भावार्थ
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