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शब्दाथा
पनि श्री अमोलक ऋषीजी अनुवादक-बालब्रह्मचारी
बोलता आ आसरक्त जा. यावत मि० धगधगायमान हुवा १० धनुष्य प. ग्रहणकर 10 बाण को प० ग्रहणकर ठा० स्थान ठि० स्थापकर आ० कर्णतक ३० बाण को क० करके व वरुण को गा० गाढा प्रहार क करे त० तब से वह व वरुण ते • उस पु० पुरुष से गा० गाढमहार क. कराया हुवा आ म आसुरक्त जा. यावत् मि० देदीप्यमान हुवा ते उस पु० पुरुष को ए०एकप्रहार कू० कूटमें आ०मारकर जी.
वरुणेणं एवं वुत्तेसमाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसिमाणे धणुं परामुसइ परामुसइत्ता, उसे परामुसइ परामुसइत्ता ठाणं ठाइ ठिच्चा आययकण्णाययं उसुकरेइ उसुकरेइत्ता वरुणं नागनत्तुयं गाढप्पहारी करेइ, । तएणं से वरुणे नागनत्तुए तेणं पुरि. से गाढप्पहारीकएसामणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसिमाणे धणुं परामुसइ परा
मुसइत्ता आययकण्णाययं उसु करेइ उमुं करेइत्ता, तंपुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीविसमान भंड पात्र व उपकरण युक्त रथ सहित आया. और वरुण नाग नतृक को ऐसा कहा कि अहो! वरुण नागनतृक ! तू मेरे पर प्रहार कर. उस समय में वरुणने उस पुरुष को कहा कि जिनने पहिले मेरे पर प्रहार नहीं किया है उसे मारनेका मुझे नहीं कल्पता है. तुम ही पहिले मेरे पर प्रहार करो. जब वरुणने उस पुरुष को एमा कहा सब उसने आसुरत्व यावत् क्रोधित. वनकरके धगधगायमान होता हुवा धनुष्य उठाया और उस में वाण रखकर अपना स्थान किया. फिर कर्ण पर्यंत प्रत्यंचा खींच
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहाय जी मालाप्रसादजी*
भावार्थ
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