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शब्दार्थ
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पंचमाङ्ग विवाह पण्णात ( भगवती ) सूत्र *80
गज र रथ ५० प्रधान जा. यावत स०सजकरी म मेरी ए. यह आ० आज्ञा दीहुई पिं० पीछी दो त० * तब ते० वे को कौटुम्बिक पुरुष जा. यावत् प० मुनकर खि० शीघ्र स० छत्र सहित स० धजा सहित उ० सजकरते हैं ज० जहां व० वरुण ना. नाग का पौत्र जा. यावत् पि पिछीदते हैं ।। १२ ।। त० तब से वह व० वरुण ना० नाग का पौत्र जे० जहां म० स्नान गृह ते० तहां उ० आकर ज. जैसे कू०
उववावेह, हयगयरहपवर जाव सण्णाहेत्ता मम मेय माणत्तियं पिच्चप्पिणह ॥ तएणं ते कोडुबिय पुरिसा. जाव पडिसुणेत्ता, खिप्पामेव सछत्तं सज्झयं उवट्ठति हयगयरह जाव सण्णाति, जेणेव वरुणे नागनत्तए जाब पिच्चप्पिणंति ॥ १२ ॥
तएणं से वरुणे नागनत्तुए जेणव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, जहा कूणिओ जाव अश्वयुक्तरथ तैयार करके लावो, वैसे ही हाथी, घोडे, रथ व पायदल की चतुरंगिनी सेना सज्ज करो इतना कार्य करके मुझे मेरी आज्ञा पीछी दो. उक्त कौटुम्यिक पुरुषों विनय पूर्वक आज्ञा प्रमाण करके ope शीघ्र ही छत्र व धजा सहित रथ वहां लाये और अश्वमजादि चतुरंगिनी सेना तैयार करके वरुण नामक नागनपतृक की पास आकर आज्ञा पीछी दे दी ॥ १२ ॥ तत्र वरुण नामक नागनतृक अपने मजनगृह में आये. वहां स्नान किया, सुगंधि द्रव्य का विलेपन किया, कोगले किये, तील मसादिक किये की
<3 <300 सीतवा शतक का नववा उद्देशा
भावार्थ
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